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12 May 2024 · 1 min read

संघर्षशीलता की दरकार है।

आँखों के आगे हैं उजाले, पर छा रहा अंधकार है,
भय ने है पंख पसारे, और उम्मीदें हुईं तार-तार है।
बोझिल हो रही हैं साँसें, पर अश्रु पर बैठा पहरेदार है,
धड़कनों में है गहन शोर, और निःशब्दिता की लम्बी कतार है।
शत्रुता है ये वक़्त की, या नियति का विस्तृत व्यापार है,
क्षणभंगुर सा है ये जीवन, बस यादों की शाश्वतता बरकरार है।
यथार्थ को स्वीकारे बैठा है मस्तिष्क, पर हृदय पर चल चुकी कटार है,
कंपित पग चल रहे हैं पथ पर, मंजिल जिसकी दुशवार है।
रूठूँ किससे पता नहीं ये, जब प्रतिबिम्ब स्वयं का हीं बेज़ार है,
निगाहें कितनी हीं हैं घात लगाए, तो कवच खुद से किया तैयार है।
युद्ध है ये परिस्थितियों का, या विवशताओं का सघन संसार है,
पीड़ा की असीमता प्रचंड है पर, संघर्षशीलता की दरकार है।

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