संगीत विहीन
मन की वीणा बाजी, फिर भी :
तन स्वच्छंद ,रण स्वच्छंद I
हृदय की डफली झनकी तो क्या ?
सनकी दौर, अवमानना घोर I
भुजा का तबला थाप दिया ना ?
अर्जित स्याह धन, कलुषित मन I
होठों की कोकिला गाती तो है:
कायर रक्षक, आक्रान्त हैं भक्षक I
चक्षु वीणा समान आकर्षित
कलुषित मन, विनष्ट तन I
साहित्य पारंगत ,संगीत संरचित
काश कि होती जीवनशैली यथोचित !