संगदिल
किस संगदिल से हम दिल को लगाए बैठे है
वो खोये है खुद में हम खुद को भुलाए बैठे है
राह जाती है गुजर कर दिल की नज़रों से कहीं
वो आँखे बंद किये दिल को छुपाए बैठे है
ज़ुल्फ़ों से खेलती उन उंगलिओं के क्या कहने
वो दांतो से दुपट्टा दबाए बैठे है
हाले दिल का हमारे उन्हें परवाह नही
दिल की लगी को दिल्लगी बाए बैठे है
सोचा था इश्क़ का ये शुरुर न छोड़ेंगे
फ़ना हो जाए फिर भी ये ग़ुरूर ना छोड़ेंगे
मिले जो गर्दिश में तुझे आवाज़ ना देना हमको
चाहते रहने का तुझे ये फितूर ना छोड़ेंगे
आशिक़ो का हर तरफ यु लगा न मेला होता
हुस्न ने हर गली में दिल से जो न खेला होता
हम भी होते इनके सलाहदार मगर
तेरी नज़रों से दिल को अपने जो बचाया होता
माँगने से कभी मोहब्बत नहीं मिलती
चाह कितनी भी गहरी चाहत नहीं मिलती
तुझे चाहना है तो तन्हाई में चाहेंगे
ये वो जगह है जहां नाकामी नहीं मिलती