संगठन
संगठन
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रचनाकार, डॉ विजय कुमार कन्नौजे छत्तीसगढ़ रायपुर
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मंदिर मस्जिद गिरजाघर का
ना करें कोई अपमान।
कण-कण पत्थर में भी होता है
गुप्त शक्ति भगवान ।।
मैं सीमेंट रेत के गारा से देता हूं
संगठन का पहचान।
मानव होकर बिखर रहे हो तुम
वाह रे मुरख नादान।।
मैं ईंट पत्थर का बना हूं महल
देते हो अलग-अलग नाम।
कान खोलकर सुन मुरख
मुझ महल का काम।।
ना मैं मंदिर ना मैं मस्जिद
ना गिरजाघर अरू गुरूद्वारा।।
मैं जपता हूं उनको जो नित
अविरलभक्ति ,हरि का प्यारा ।।
आत्मज्ञानी भक्त जनों का मैं
चरणानुरागी सेवक हूं।
जाति पाती धर्म से ऊपर उठ
मैं मानवता का देवक हूं।।
मैं निरिह बिन मुंह का रहता
मौन व्रत का गामी हूं।
ईश पुजन को जो आते हैं
उनका मैं अनुगामी हूं।।
मुस्लिम हिंदू सिख ईसाई
करता है तू भेद।
भुल गये मानवता को है
मुझ पत्थर को देख।।
ईंट अलग है रेत अलग है
मैं पिसा हुआ सीमेंट।
परहित के कारणे जब
होता हूं समर्पण मैं एक।।
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