संक्रांति
संक्रांति
(गीत )
मकर राशि पर सूर्य चले हैं
लेकर नव संकल्प।
उत्तरायणी पर्व हुआ मन
मकर राशि आदित्य।
तन मन का मौसम है बदला
रश्मिरथी लालित्य।
नवचेतन नव उर्जित तन मन
उत्तर अयन दिगन्त।
नवल पुष्प मूर्छा से जागे
घर आये हैं कंत।
नव विकास पथ लोग चले हैं
मन में नहीं विकल्प।
पोंगल बीहू और लोहड़ी
मकर राशि संयोग।
भर्ता बाटी खिचड़ी खाते
लगा नर्मदा भोग।
स्वयं भास्कर पुत्र शनि से
मिलने आये आज।
रंग बिरंगी उड़ीं पतंगें
ले मन की परवाज।
संगम में सब लेते डुबकी
हुए सिद्ध प्राकल्प।
गुड़ तिल के लड्डू की खुशबू
मन मद्दत मदहोश।
माँ रेवा के दर्शन करते
आया जीवन जोश।
जात्रा कीर्तन मेला भरते
जीवन मंगल मोद।
कोटि कोटि भारत के शुभ जन
मन भर करें विनोद।
पुण्योज्वल संक्रांति मधुरमय
नव -विचार नव -शिल्प।
सुशील शर्मा