संकल्प
जीवन चक्र की गति कुछ थम सी गई है ,
जीवन में खुशी की उमंगे कुछ खो सी गईंं हैंं ,
एक विचित्र सा भय अंतर्मन में व्याप्त है ,
वातावरण में चहुंओर विवशता अनुभूति है ,
मुस्कान लाकर सहज रहने के प्रयास भी विफल हो रहे हैं ,
जानबूझकर अनदेखा कर निकल जाने को हम विवश हो रहे हैं ,
अपने ही दुःख में खोया सा लगता है हर आदमी ,
नियति के निष्ठुर वार से सताया लाचार सा लगता है हर आदमी ,
न जाने कब, कैसे और कहां से यह आपदा आई है ,
जिससे सागर की उत्ताल तरंगों भांति प्रफुल्लित इस नगर में यह मृत्यु की विभीषिका छाई है ,
अच्छे समय की प्रतीक्षा के धैर्य का बांध अब टूटने लगा है ,
इस त्रासदी से डटकर सामना करने का भाव उग्र होने लगा है ,
नियति के इस कुठाराघात को अब हम और न सहेंगे ,अपने प्राणों की आहुति देकर भी दृढ़संकल्पित भाव से इससे लड़ेंगे ,
हर संभव प्रयास कर इसे समूल नष्ट करके ही अब हम चैन लेंगे ,