संकल्प
प्रखर ज्योति की सुन्दर ज्वाला क्यों
धधकी बनकर दावानल ?
स्वेद से सींचा जिस महीतल को क्यों
स्निग्ध है रक्त कणों से ?
प्रेम से अंकुरित किया जिस उपवन को
क्यों शूल उगे हैं उसके अन्दर ?
मधुर गीत क्यों आर्तनाद बन रहे ?
क्यों मानववेशी दानव मृत्यु ताण्डव कर रहे ?
क्यों सदाचार स्वप्निल हुआ ?
क्यों बना प्रत्यक्ष अनाचार ?
विश्व शान्ति क्यों भंग हो गयी ?
क्यों नही हुआ आतंक का प्रतिकार ?
द्वेष ,क्लेश क्यों पनप रहा जनमानस में ?
क्यों न प्रेम उपज रहा मनस में ?
आवाहन देता यह समय कह रहा !
करो संकल्प ! निर्भीक बनो तुम !
करो धव्स्त मन्तव्य आतता के !
कमल बनो निर्मल रहो तुम !