संकट
भीषण गर्मी छाई है,भूमि पर आपदा आयीं हैं ।संकट गहराई है । ये आपदा स्वयं नहीं आई। उन्नत हरियाली खोना, अपने को विकसित कहना,जीवन को स्वयं संकट में डालना।कुछ शब्द लिखती हूं। अपनी भावना कहती हूं । दिल को छू जाए, तो स्वीकार कीजिएगा। शायद चोट लगे ,तो अस्वीकार कीजिएगा। उलझ कर जीतें हैं सब वर्तमान में जीतें हैं,आगे राम जाने कहकर । क्या वो नही हुए थे परेशान । दुनिया में परेशानी,संकट है ही। जीवन जीना, इसके सुख है, तो इसके दुख भी है। ध्यानी ,संत कहते,करते उचित कर्म। जो करते हैं उचित कर्म वही पाते केंद्र (लक्ष्य )को । व्यक्ति के जीवन में, प्रकृति के संसाधन का बचे हुए , बचाव काध्यान होगा तभी कल्याण होगा। संकट को भी जीना शान होगा।