संकट और खुशहाली
प्रभु !
संकट के समय ‘ मुझे बचा लो ‘
तुमसे ऐसी गुहार नहीं करूँगी ,
मुझे पता है कि तुमने
अदृश्य रूप में मुझे
संकटों से उबरने की शक्ति दी है
मैं उस दिव्य शक्ति के सहारे ही
संघर्ष करती हुई
सभी संकटों पर विजय पा सकती हूँ ।
प्रभु !
मुझसे मेरी अंतश्चेतना कहती है कि
संकट और खुशहाली
एक ही सिक्के के दो पहलू हैं
शायद खुशहाली की अति में ही
संकट का बीज विद्यमान है और
संकट की चरम सीमा ही
खुशहाली के मार्ग तक पहुँचने का संकेत चिह्न है ,
तब केवल संकट के समय ही
‘ मुझे बचा लो ‘ जैसी गुहार का
क्या औचित्य ?
डॉ रीता
आया नगर,नई दिल्ली