सँभाल तू खुद अपनी पतवार…
सँभाल तू खुद अपनी पतवार —
लुटाता रहा तू सब पर प्यार
कभी तो अपनी ओर निहार
स्वार्थ ग्रसित है जग ये सारा
सिर्फ अपने मतलब का यार
जगती हँसती सुख में अपने
तू क्यों ढोए अश्कों का भार
तू ही नहीं जब अपना होगा
कौन करेगा तुझपर उपकार
रे मन पगले, मान ले अब तू
न कर यूँ खुद पर अत्याचार
गिरती दिन- दिन सेहत तेरी
पड़ेगा एक दिन लंबा बीमार
काट बेड़ियाँ मोह-ममता की
छोड़ेगी संतति बीच मंझधार
घटता तिल-तिल जीवन तेरा
किस पल का है तुझे इंतजार
अपनी खुशी में खुश हो तू भी
जी मस्ती में दिन बचे जो चार
कोई न खेवट जीवन-नैया का
सँभाल तू खुद अपनी पतवार
राम-नाम रमा ले रोम-रोम में
बस वही करेगा बेड़ा पार
उस असीम का अंश है तू भी
लघु ‘सीमा’ पर कर न विचार
– डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)