षोडश दोहा वृष्टि
शीतलता चारों तरफ़, आई बरखा झूम
मन उपवन में कोकिला, कूक मचाये धूम // 1. //
प्रेम मयूरा नाचता, आग लगी घनघोर
बारिश में तन भीगता, हिया मचाये शोर // 2. //
दृश्य विहंगम सामने, ज्यों रिमझिम बरसात
कलरव की मधुरिम छटा, कुदरत की सौगात // 3. //
घुलता तन में प्रेम रस, बहकी जाये रात
रुक जाओ तुम प्रियतमा, थमे नहीं बरसात // 4. //
बाँहों में सिमटे प्रिये, गरजे ज्यों-ज्यों मेघ
तन-मन दोनों भीगते, बरसे ज्यों-ज्यों मेघ // 5. //
वर्षाऋतु घनघोर है, उत्पन्न प्रलयकाल
कड़क रही है दामिनी, रूप बड़ा विकराल // 6. //
फुदक-फुदक कर मेढ़की, टर्राये दिन-रात
सबको ही सूचित करे, आई है बरसात // 7. //
इंद्रधनुष मन मोहता, किरण लालिमा युक्त
रवि मेघों के मध्य में, वर्षा से उन्मुक्त // 8. //
रिमझिम जब वर्षा हुई, आँख खुली तब भोर
तन-मन बाजी प्रेमधुन, सब बन्धे इक डोर // 9. //
प्यासी धरती को मिले, वर्षा ऋतु से प्राण
मदमस्त सृष्टि झूमती, चले प्रीत के बाण // 10. //
ताल सरोवर जल भरे, बारिश का आभार
हरियाली सर्वत्र है, कण-कण बरसा प्यार // 11. //
पानी के संगीत से, बजते मन के तार
वर्षा की बूँदें करें, पृथ्वी का उद्धार // 12. //
सूखी नदियाँ उफनती, है जलवृष्टि प्रताप
ग्रीष्म दोष से मुक्त हम, मिटे सभी सन्ताप // 13. //
कोई छतरी तानता, ज्यों बरसी बरसात
गोरी चूनर ओढ़ती, छिड़ी प्रेम की बात // 14. //
काग़ज़ की नौका दिखी, होंठों पे फ़रियाद
बारिश में बचपन दिखा, लौटी मधुरिम याद // 15. //
वर्षाऋतु में राधिका, भीगे-भीगे श्याम
वृन्दावन में गोपियाँ, देखें जी को थाम // 16. //
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1. विहंगम — विहंगम का “सुंदर” से कोई लेना-देना नहीं है। विशेषण के तौर पर इसका अर्थ है आकाश में विचरण या गमन करने वाला और इसी से उसका संज्ञा वाला अर्थ निकलता है— बादल, सूर्य, पक्षी क्योंकि यही हैं जो आकाश में गमन करते हैं।
2. दामिनी — आकाश में चमकनेवाली बिजली, तड़ित।
3. ग्रीष्म दोष — गरमी से उत्पन्न होने वाली समस्याएँ। जब इस रूखे मौसम में प्रकृति के प्राण तक सूख जाते हैं। सूर्य नदी-तलाबों या अन्य स्रोतों का जल सुखा देता है। वृक्ष-पौधों, घास-फूस से हरियाली लुप्त होने के कगार पर पहुँच जाती है। बेचैन मनुष्य, पशु-पक्षी समस्त प्राण त्राहिमाम कर उठते हैं। ऐसे में वर्षा वृष्टि पुनः वसुन्धरा में नए प्राण फूँक देती है।