षडपदी
बढ़ती जाय घड़ी की सुइयाँ,
पल छिन घटत उमरिया हाय।
तौ भी ऐश की फिक्र सतावे,
मुफत का माल कब मिल जाय।
दाँत बचे नहि मुँह में इक भी,
तड़पत चने अबहिं मिल जाय ।
राम भजन में मन नहि लागै ,
डान्स चइनल बहुतइ लुभाय ।
गदह पचीसी में सब उरझे ,
उस्तरा कपिहि करहिं दिखाय।
उलट उस्तरा कर गहि धावैं ,
खुद की गरदन धरनि गिराय ।