शख़्स एक…
एक अनजाना नशा-सा छा रहा है
शख़्स एक, दुनिया से दिल में आ रहा है…
मैं उसी के प्यार में, ग़ुम हो गई हूँ
वो भी मुझमें, डूबता-सा जा रहा है…
आरती की लौ बनी, मैं जल रही हूँ
और वो दीपक बना, मुस्कुरा रहा है…
देखता है वो मुझे, ऐसी नज़र से
जैसे हर कदम पर, मुझे आजमा रहा है…
अपने गीतों, ग़ज़लों और रूबाईयों में,
क्या है मुझमें, वो मुझे ही गा रहा है…
‘अर्पिता’ क्यों अबतलक ना जान पायी
वो साथ मेरा क्यों निभाना चाह रहा है…
-✍️देवश्री पारीक ‘अर्पिता’