श्रृष्टि का आधार!
अब नहीं चिंता किसी को, फ़िक्र नहीं ज़रा भी तेरी आज,
उठना होगा स्वयं से तुझे हे नारी! करना होगा प्रतिघात।
सहने की उम्र गयी, बीत गए लम्हे सब जल कर आज,
जगाना होगा अंदर की काली को, मचाना होगा हाहाकार।
छोड़नी होगी मृदुलता सभी, बनना होगा कठोर आज,
उठाना होगा शस्त्र तुझे, करना होगा फ़िर से पलटवार।
यहाँ हर कोने में निडर रावण बैठा हैं कहीं कई आज,
करना होगा ज़ोर से आघात, करनी होगी भयंकर मार।
लड़ाई हैं खुद की, साथ ना कोई संग देने को आज,
लड़ना होगा अकेले, तो क्या हुआ, हुआ जो विश्वासघात।
उम्मीद ना बची किसी से, ना रही अब कोई भी आस,
बहुत हुआ इंतज़ार इंसाफ़ का, अब उठाना होगा हथियार।
जता दे, बता दे, याद दिला दे, दिखा दे, सीखा दे आज,
भूल जो गए हैं तुझे बिसरा के, कि शृष्टि का तू ही तो हैं आधार।