श्री राम
राम एक नाम नहीं, यह कर्तव्य का बोध है,
पौरूषता, शील, चरित्र विचार का शोध है।
घिर आए जब अंधकार की घटा, हर ओर,
नाम राम का ही मात्र एक प्रकाश का स्रोत है।
कर्तव्य परायणता, विलक्षणता का गुण होता,
हर किसी में नहीं,
सहज ही पा लेता जो, राम भक्ति से ओत-प्रोत है।
जब हृदय घिरा हो द्वंद में, स्मरण राम का कर्म है,
स्नेहता और सरलता ही तुम्हारा मात्र एक धर्म है।
वे स्वयं थे विष्णु अवतार, पर इनका न उन्हें अभिमान था,
हृदय में कटुता का दंभ नहीं, शील चरित्र की
साधना का ज्ञान था।
पूजनीय हो सकें संसार में केवल क्योंकि
उन्हें कर्तव्यों का ध्यान था,
पुत्र, शिष्य, भ्राता, स्वामी, आराध्य, राजा
किया श्री राम ने हर रूप में बलिदान था।
अज्ञानता को राम के, दर्शन ज्ञान से उलीच चलो,
हे मनुष्य! यदि तुम्हें सीखना है तो कुछ सीख लो।
ज्ञान चक्षु खोलकर, अकर्मण्यता छोड़कर,
सफलता को सकल व्योम पर खींच लो,
हर चरित्रों में एक चरित्र, प्रभु श्री राम से ही सीख लो।