श्री राम भक्ति सरिता (दोहावली)
श्री गजानन गणपति, सहज करो कल्याण
विष्णु मन रमे राम में, दो ऐसा वरदान।1
बुद्धि के दाता प्रभु, गजानन महाराज,
विष्णु सुबुद्धि दीजिए, राम भक्ति के काज।2
श्वेत अंबर धारिनी, हाथ ले वीणा वाद्य।
विष्णु सुमिरन है करें, सकल मनोरथ साध्य।3
करूं वंदना चरणों में, ध्यान धरूं हितेश
ऐसी बुद्धि दीजिए, ब्रह्मा विष्णु महेश।4
विष्णु नीज हृदय धरु, राम नाम का सार
राम उतारे नाव को, भवसागर के पार। 5
विष्णु भक्ति रघुनाथ की, कहु जो कैसे होय
मोह सर्प की पास से, छूटत नहीं है कोय। 6
जन्म मरण के मध्य में, बहता जीवन नीर
राम तत्व तू जान ले, विष्णु धरियो शरीर।7
कल्पवृक्ष राम नाम है, शीतल छाया देत
विष्णु नाम सौ जन्म भरे, राम नाम का खेत।8
दास विष्णु रघुनाथ का, जपे नाम चहु ओर
रघुनंदन अब शिघ्र हरो, सारे अवगुण मोर।9
राम नाम मंदाकिनी, नहीं ना कोई छौर
विष्णु दोय अक्षर समै, सकल जगत चहुओर।10
राम नाम ज्योतिपुंज है, घट घट अंश समाय
सकल विश्व उजियार करें, विष्णुक राम सुभाय।11
विष्णु बहती रेत सामान, क्षण क्षण घटति जाय
राम नाम का जाप करि, भवसागर तर पाय।12
राम कृपा जलधि समान,भरियो नीर अपार
विष्णु सीपी ढुंढ लिजिए, दोय अक्षर का सार।13
विष्णु इस संसारन में ,राम भक्ति इक आस
रघुवर चरण कमल वदन, जब लग घट में सांस।14
भवसागर के मध्य में ,तरिणी गोता खाय
रघुनंदन अब कृपा करो, सूझे विष्णु उपाय।15
राम भक्ति गंग धार का, विष्णु कर ले पान
सहज ही धुल जाएगा, तेरा ये अभिमान।16
राम सकल परब्रह्म के, गुन न होत बखान।
विष्णु मूढ़ बुद्धि भये, जान न सकल सुजान।17
श्री रघुवर पंकज चरण, नील सरोवर श्याम
विष्णु वंदन करत करत, कहाँ मोह विश्राम।18
विष्णु चित्त को घेर लिए, चतुर भयंकर सांप
रघुवर अब कृपा करो, एक तुम्हारी आस ।19
राम भक्ति मधु पान करि, विष्णु प्यास बुझाय
अंतरहि रस सींचीहिं , निर्मल होत सुभाय।,20
चरण वंदना रघुनाथ की, विष्णु बढ़ाये मान
उसके सारे कष्ट हरे, राम भक्त हनुमान। 21
कर दास विष्णु चाकरी, सा आनंद रघुनाथ
निधि सकल भूलोक की, सदा रहेगी साथ। 22
विष्णु मन मंदिर बसै , एक छवि रघुनाथ
भक्ति मन रम जाइए, अष्टप्रहर दिन रात। 23
कोमल पद पंकज नयन, श्याम सलोने गात
विष्णु रघुवर शिरोमणि, धरे हाथ सरचाप।24
कोमल पुष्प गुलाब सी, रघुवर की मुस्कान।
विष्णु दृग को करत रहे, शीतल चंद्र समान।25
विष्णु मन हृदय बसे, अनुज सहित सियाराम
रिपुदमन साथ भरत खड़े, चरण ध्यान हनुमान।26
पावन अयोध्या धाम की, धुलि मलउं निज सीर
विष्णु जिन रज चरण परे, अनुज सहित रघुवीर। 27
दया दीन को लखत है, दीनबंधु रघुनाथ
दनुज देव मानव मनन, करें जो भक्ति साथ। 28
राम नाम के जाप से , तन मन पावन होय
विष्णु ताप पावक लगे, कंचन निर्मल सोय। 29
नेती नेती बोल कर, हारे वेद पुरान।
विष्णु महिमा राम की, कैसे करें बखान। 30
कोटि-कोटि सिंधु समाय, विष्णु जितना नीर
सकल शगुन आनंद मय, लीलाधर रघुवीर। 31
कृपा निधान रघुनाथ की, पड़े जो दृष्टि नेह
जन्म मरण बंधन कटे, विष्णु सहज सनेह।32
चारू चंद्र ललाट पर, तिलक सुशोभित होइ
विष्णु सदा रघुनाथ छवि, अंतर मन में सोइ। 33
रघुवर भक्ति प्रकाश से, आलोकित संसार
सज्जन मन ही जानी है, विष्णु कहत सुजान। 34
निर्गुण शगुन सब एक है, तरल बरफ अरु गैस
रघुवर सच्चिदानंद ही, विष्णु धरियो सवेश।35
राम भक्ति से मिटत हैं, अज्ञानता के शूल
भानू उदित होते ही, विष्णु खिलते फूल। 36
भक्ति फूल गुलाब पर,भ्रमर राम मँडराय
विष्णु प्रेम रस सींचीहिं, निर्मल बास सुहाय। 37
रघुवर माथ किरीट पर, रत्न जड़ित चहुंओर
भक्ति कर सो पाईये , विष्णु रत्न की ठौर । 38
काक भूषण्डी ने कही, गरुड़ महिमा महान
विष्णु करले रामकथा , तू भी श्रवण पान। 39
शंकर मुख से जो सुनी,गौरा महीमा राम।
वही सच्चिदानंद स्वरूप, रघुनंदन गुण धाम। 40
राम नाम की महिमा का, होत नहीं बखान।
जिन्हीं ध्यान दे सुनहीं, विष्णु कथा महान। 41
खग मृग पत्थर सब तरे, राम कृपा जो होइ
विष्णु खल तर जाएगा, करें ध्यान जो कोइ। 42
मुनि याज्ञवल्क्य कथा कहि, भारद्वाज सुनेह
राम मति मोहे दीजिए, विष्णु सुनेह सनेह। 43
विष्णु शकट संसार पर, आरुड़ व्हे रघुवर।
स्वयं बनकर सारथी, हांकत घोटकयान।44
विष्णु जठर की अग्नि, अन्न है देत बुझाय
मोह पास की आग से, रामहि भक्ति शमाय। 45
विष्णु हृदय को सींच दे, राम भक्ति का नीर
मेघ वर्षा से मिटत हैं, बंजर खेतक तीर। 46
विष्णु काया खेत समान , कर्म फसल का बीज
आनंद फल पाएगा, राम भक्ति से सींच।47
योनि योनि फिरत फिरत, जन्म मरण का फेर
राम भक्ति तर जाइये, विष्णु सागर तेर। 48
प्रेम जगत की रित है , प्रेम ही भक्ति सुहाय
विष्णु माता शबरी ने, प्रेम से बेर खिलाय 49
वेद धरम का सार है, वेद सार एक नाम
चर अचर में व्याप्त है , एक नाम बस राम। 50
मार्ग बड़ा कठिन है, राह राह बटमार
भक्ति विष्णु कैसे होइ, राम लगाओ पार ।51
राम भक्तिमय सरिता में, विष्णु करे असिनान
तन मन स्वच्छ होइए, किया जो तुने ध्यान।52
विष्णु इस संसार में, वही बड़ा धनवान।
रामरत्न की निधि पाकर, जो करता अभिमान।53
चंचल चित् है कहाँ टिकत, एक जगह अभिराम
विष्णु मन आधार धरे, शगुन राम गुण धाम। 54
राम राम की रट लगे, राम ही करें उपाय
विष्णु हृदय राम बसे, गुरुवर मार्ग सुझाय। 55
विष्णु अकिंचन आत है, और अकिंचन जात
राम भक्ति तर जाएगा, लाख टके की बात। 56
राम रस का भोग करे, रसना तृप्ति होइ
विष्णु मन आनन्द भयो, कटूक मुख भी सोइ। 57
विष्णु रघुवर आन बसे, अंतर्मन ही आप
सहज ही सब धुल गये ,जनम जनम के पाप। 58
विष्णु विष भुजंग तजे, राम नाम की रिति
रघुवर शरण सकल जीव राम नाम की प्रीति 59
तीन लोक चौदह भुवन,इक भुपेश श्री राम
विष्णु संकल्प मात्र से,बिगरि बने सब काम।60
जेही पाथर तिरत रहे,लिखत रहे जो राम
विष्णु राम के नाम से,बन जाते सब काम।61
मोह लोभ का दास है, प्राणी जगत अधीर
सुनतन गुंजन राम की, विष्णु भयों बधिर।62
क्षणभंगुर इस गात पर, मत कर तू अभिमान
विष्णु रज मिल जाएगा, भज राघव गुणधान 63
विष्णु सुमरन राम का, करता रहे सदैव
जाकि ध्यान न स्वयं करें, कैलाशपति महादेव। 64
दुर्जन मिथ्या भक्ति करी, अंत ही पाप समात
विष्णु बगुला ध्यान करि, मीन करत है घात।65
सत्य सनातन एक है, एक सनातन राम।
पवनसुत हनुमान धरे, धुन दशरथ सुतराम। 66
दया निधि रघुनाथ की, शरण जो जाइ कोइ
क्रोधी आपन क्रोध तजे, विष्णु निर्मल होइ। 67
शील धरम का मूल है, क्रोध अधर्म का मूल
राम भक्त पद फूल है, विषय वासना शूल।68
श्याम वर्ण रघुनाथ पर, पीतांबर परिधान
मानहु निलमणी रत्न पर,पीत अंशु की शान।69
कौशल नंदन राम के, गुण होत न बखान
नेति नेति कह थक गये, सकल वेद पुराण। 70
निर्गुण रघुवर सगुन भये, मानव धरा शरीर
भक्तों के तारण हारी प्रभु, पुरुषोत्तम रघुवीर। 71
रघुवर चारु चक्षु की, शोभा बरनि न जाए
विष्णु हिमगिरी श्रृंग पर, नील पद शोभा पाय।72
करणफूल रघुनाथ की, झिलमिल दूति सुहाय
विष्णू श्रावण मास में, मेघहि तड़ित सजाय।73
चारू चंद्र ललाट पर, तिलक सुशोभित सोहि
सहज मनोहर छवि राम, विष्णु हृदय को मोहि।74
विष्णुक मन के दीप में, राम भक्ति प्रकास
घूप तम की गेहन को,आपहि करे उजास ।75
रघुवर मंजुल कंठ पर,सोहत गुंजन माल
विष्णु दर्शन करने से, होय सौ जन्म निहाल।76
विष्णु इस संसार में, राम नाम आधार
भवसागर के पास से, वही उतारे पार।77
निज हृदय सुमिरन करूं राम नाम का जाप
विष्णु सब कट जाइए, जनम जनम के पाप।78
चर अचर में व्याप्त है, राम नाम की धुन
विष्णु अतः हृदय बसे, छवि राम शगुन79
रोम रोम में राम बसे, जैसे घन में नीर
राम नाम की नाव से विष्णु उतरे तीर।80
श्याम वर्ण शरीर पर, सोहे गुंजन हार
उदित मनोहर बालरुण, जैसे क्षितिज पार।81
विष्णु के अवतार प्रभु, रघुनंदन सरकार
नौका है मझधार में, आप लगाओ पार।82
पाँच सदी से आपकी , जोह रहे हैं बाट
चक्षु शीतल होय है, विराजो मंदिर ठाट।83
भव्य मंदिर आपका, बना अयोध्या धाम
अखंड भारतवर्ष में गूंजे नाम एक राम।84
महिमा आपकी है बड़ी वो दासों के नाथ
ये दास विष्णु वन्दना, करे जोड़कर हाथ।85
रत्नाकर में रत्न नहीं, राम रत्न अनमोल
नारायण को पाइये ,मान के चक्षु खोल ।86
तीन गुण में गुण बसे, राम गुण बस एक
चरण कमल में आज, तू विष्णु मस्तक टेक।87
शगुन शकल श्री राम का, कर ले तू गुणगान
सहज ही बढ़ जाएगा ,अरे विष्णु अभिमान।88
चरण कमल की वंदना कर रघुनाथ की आप
धूल जाएंगे सहज ही, कोटि जनम के पाप।89
जय जय राजा राम की, फिर फिर करें पुकार
भवसागर तर जाहिये, विष्णु नैया पार।90
श्री राम के नाम में, शक्ति ऐसी अपार
पत्थर जल तर झेल गए, सेतु बनके भार।91
राम राम का जाप करें, देखो केसरी लाल
जिनकी शक्ति देखकर, असुर भये पाताल।92
जिनकी धनुष टंकार से, अरिहर कांपे जाए
उन्ही राम की भक्ति से, भक्त परम सुख पाए।93
श्याम वर्ण मस्तक पर, तिलक सुशोभित होय
जैसे संध्या चंद्रमा, क्षितिज पर जेही सोय।94
सिया राम के चरणों में, तीनों लोक समाहि
करे जो भक्ति आपकी, परम गति को पाहि।95
विष्णु धारण कर हृदय, चरण कमल श्री राम
कहां भटकता फिरत है, यही है चारों धाम।96
नारायण परब्रह्म ने, लिया त्रेता अवतार
कर कोदंड धारण किए, किया असुर संहार।97
नारायण प्रभु राम का, कर ले रसना पान
विष्णु सहज मिल जाएगा, तुझे ब्रह्म का ज्ञान।98
राम लक्षमण माँ जानकी, आए अयोध्या धाम
पद कमल में पलक बिछा, भक्त भये धूम-धाम।99
सनातन भारतवर्ष की, खुशी का न कोई पार
श्री राम के स्वागत में, विष्णु सजाये द्वार।100
विष्णु विनोद से झूम रहा, राम रंग में रंग
राम अवध में आ बसे, भैया लक्ष्मण संग।101
-विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’