श्री रामनामी दोहा
देह जाय तक थाम ले, राम नाम की डोर
फैले तीनों लोक तक, इस डोरी के छोर //१. //
भक्तों में हैं कवि अमर, स्वामी तुलसीदास
‘रामचरित मानस’ रचा, राम भक्त ने ख़ास //२. //
राम-कृष्ण के काज पर, रीझे सकल जहान
दोनों हरि के नाम हैं, दोनों रूप महान //३. //
छूट गई मन की लगन, कहाँ मिलेंगे राम
पर नारी को देखकर, उपजा तन में काम //४. //
सियाराम समझे नहीं, कैसा है ये भेद
सोने का कैसा हिरन, हुआ न कुछ भी खेद //५. //
वाण लगा जब लखन को, रघुवर हुए अधीर
मै भी त्यागूँ प्राण अब, रोते हैं रघुवीर //६. //
मेघनाद की गरजना, रावन का अभिमान
राम-लखन तोड़ा किये, वक़्त बड़ा बलवान //७. //
राम चले वनवास को, दशरथ ने दी जान
पछताई तब कैकयी, चूर हुआ अभिमान //८. //
राजा दशरथ के यहाँ, हुए राम अवतार
कौशल्या माँ धन्य है, किया जगत उद्धार //९. //