Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 Sep 2022 · 3 min read

*श्री महेश राही जी (श्रद्धाँजलि/गीतिका)*

श्री महेश राही जी (श्रद्धाँजलि/गीतिका)
“”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””‘
(1)
चले गए हँसते-मुस्काते श्री महेश राही जी
रहे अन्त तक कलम चलाते श्री महेश राही जी
(2)
गढ़ी कल्पनाओं से दुनिया आदर्शों को खेते
जाति – प्रथा इसमें ठुकराते श्री महेश राही जी
(3)
तपस” आपकी अन्तिम रचना उपन्यास मनभावक
वसुधा एक कुटुम्ब बताते श्री महेश राही जी
(4)
दयानन्द के अनुयायी थे आर्य-समाजी-चिन्तन
उपन्यास द्वारा फैलाते श्री महेश राही जी
(5)
अन्तिम सीख यही इनकी समरस समाज की रचना
इसे “तपस” से जग में लाते श्री महेश राही जी
“”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””
(मृत्यु: 14 नवम्बर 2015)
“”””””””””””‘””'”””””””””””””””””””””””””””””””””
रचयिता :रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश) 99976 15451
———————————————-
रामप्रकाश सर्राफ मिशन, रामपुर द्वारा रामप्रकाश सर्राफ लोकशिक्षा पुरस्कार 2014 से सम्मानित श्री महेश राहीः
——————-
सम्मान पत्र
——————-
“जाति-पाति के बन्धनों में जकड़े हम कब तक इन बेड़ियों में जकड़े रहेंगे ? एक ओर तो हमारा परिवार आर्य समाजी है जो ऊँच-नीच में विश्वास नहीं रखता है, जो समरस समाज में विश्वास रखता है, जो महर्षि दयानन्द का परम अनुयायी है, और दूसरी ओर हमने अपने संकीर्ण आचरण से कितना बड़ा अनर्थ कर दिया। क्या यह जन्मजात जाति व्यवस्था का अनुसरण नहीं था ? कहाँ चले गये हैं हमारे वह आदर्श ? क्या हमने अपने आचरण में आर्य समाज के उद्देश्यों को आत्मसात किया ? क्या मनुष्यता की भावना का यह विस्तार था ? क्या महर्षि दयानन्द की वैचारिकता का हमने स्पर्श किया ? हमारे महापुरूषों ने जिस समता की रचना का स्वप्न देखा, आज उसकी क्या अवस्था है ? इस समय यह हमारे हिन्दू समाज में क्या होता जा रहा है? और आज तक जो हुआ, यह सब सुधारना होगा। जाति व वर्गों को भूलकर मानवता के आधार पर यह भूलें सुधारनी होंगी।”

उपरोक्त ओजस्वी और प्रेरणादायक विचार समर्पित लेखक श्री महेश राही ने फरवरी 2014 को प्रकाशित अपने उपन्यास “तपस” के पृष्ठ 135-136 में व्यक्त किये हैं। यह मात्र कोरे शब्द नहीं हैं, अपितु स्कूली शिक्षा के रिकार्ड में दर्ज महेश चन्द्र रस्तोगी के ‘महेश राही’ नामक एक महानायक में बदलने की प्रक्रिया है। समाज के इर्द-गिर्द फैली विसंगतियों पर महेश राही ने चिन्तन-मनन किया, समस्याओं के समाधान के रास्ते तलाश किये और साहस करके विविध विषयों पर समाज का मार्गदर्शन करने के लिए अपनी लेखनी चलाई। एक लेखक के रूप में आपने जाति-भेद से मुक्त समाज, धर्मनिरपेक्ष जीवन दृष्टि, स्त्री-पुरुष समानता तथा देशभक्ति से ओत-प्रोत जीवन की ही अराधना की है। आपका लेखन समाज को उदार, तर्कपूर्ण तथा सात्विक विचारों की दुनिया में लेकर जाने वाला है। “तपस” आपकी साहित्य साधना का सर्वोच्च शिखर है। जो बताता है कि अश्लीलता तथा अमर्यादित शब्दावली के प्रयोग के बिना भी यथार्थ का चित्रण बखूबी हो सकता है। इसके लिए आप अभिनन्दन के पात्र है।
आपकी कर्मभूमि रामपुर तथा जन्मभूमि बदायूँ है। आपका जन्म 24 अक्टूबर 1934 को बदायूँ में हुआ था। आपके पिता का नाम लाला राजाराम तथा माता का नाम श्रीमती रामदुलारी है। आपमें छात्र जीवन से ही साहित्यिक प्रवृत्ति अत्यन्त प्रबल थी, पढ़ाई के दौरान ही आपकी पहली कहानी “आहुतियॉं” श्रीकृष्ण इन्टर कालेज बदायूँ की वार्षिक पत्रिका में 1952 में प्रकाशित हुई। तत्पश्चात लेखन और प्रकाशन का क्रम ऐसा बढ़ा कि आज जीवन के अस्सी वर्ष हुआ चाहने पर भी लेखनी निरन्तर सक्रिय है। आपने लेखन के क्षेत्र में कविता और कहानी दोनों ही विधाओं को आजमाया। आपका काव्य संग्रह 2001 में तथा तीन कहानी संग्रह 1989, 1993 तथा 2001 में प्रकाशित हुए।
आप प्रगतिशील लेखक संघ, रामपुर के जिलाध्यक्ष तथा उत्तर प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य है। लेखन के साथ-साथ देश के विविध नगरों-महानगरों में लेखक सम्मेलनों में भागीदारी आपकी लेखकीय सक्रियता की बहुत मूल्यवान बनाती है। आप ज्ञान मन्दिर पुस्तकालय, रामपुर के अध्यक्ष हैं तथा इसकी शताब्दी स्मारिका के प्रधान सम्पादक रहे। आपको ‘परिवेश'” तथा “विश्वास” साहित्यिक पत्रिकाओं का क्रमश: सह-सम्पादक तथा संरक्षक होने का गौरव प्राप्त है।
साठ वर्ष की आयु में वर्ष 1994 में कलक्ट्रेट रामपुर से ज्येष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त होने के पश्चात आप साहित्यिक तथा सामाजिक क्षितिज पर पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय हैं। आप स्वस्थ रहते हुए सौ वर्ष का जीवन जिऍं- अथर्ववेद की इसी मंगलकामना के साथ वर्ष 2014 का रामप्रकाश सर्राफ लोकशिक्षा पुरस्कार आपको समर्पित है।

228 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
देख स्वप्न सी उर्वशी,
देख स्वप्न सी उर्वशी,
sushil sarna
मानसिक और भावनात्मक तकलीफ
मानसिक और भावनात्मक तकलीफ
Mamta Rani
जिन्हें
जिन्हें "हिंसा" बचपन से "घुट्टी" में मिला कर पिलाई जाएगी, वे
*प्रणय*
प्यार विश्वाश है इसमें कोई वादा नहीं होता!
प्यार विश्वाश है इसमें कोई वादा नहीं होता!
Diwakar Mahto
संस्कार और अहंकार में बस इतना फर्क है कि एक झुक जाता है दूसर
संस्कार और अहंकार में बस इतना फर्क है कि एक झुक जाता है दूसर
Rj Anand Prajapati
"बेल"
Dr. Kishan tandon kranti
खानाबदोश
खानाबदोश
Sanjay ' शून्य'
2751. *पूर्णिका*
2751. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
**जाते-जाते वो हम से वफ़ा कर गए**
**जाते-जाते वो हम से वफ़ा कर गए**
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
कविता जीवन का उत्सव है
कविता जीवन का उत्सव है
Anamika Tiwari 'annpurna '
तुम ऐसे उम्मीद किसी से, कभी नहीं किया करो
तुम ऐसे उम्मीद किसी से, कभी नहीं किया करो
gurudeenverma198
महफिलों में अब वो बात नहीं
महफिलों में अब वो बात नहीं
Chitra Bisht
देखिए मायका चाहे अमीर हो या गरीब
देखिए मायका चाहे अमीर हो या गरीब
शेखर सिंह
“जब से विराजे श्रीराम,
“जब से विराजे श्रीराम,
Dr. Vaishali Verma
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
"" *गीता पढ़ें, पढ़ाएं और जीवन में लाएं* ""
सुनीलानंद महंत
फीका त्योहार !
फीका त्योहार !
पाण्डेय चिदानन्द "चिद्रूप"
सफलता और खुशी की कुंजी हमारे हाथ में है, बस हमें उस कुंजी का
सफलता और खुशी की कुंजी हमारे हाथ में है, बस हमें उस कुंजी का
Ravikesh Jha
రామ భజే శ్రీ కృష్ణ భజే
రామ భజే శ్రీ కృష్ణ భజే
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
इश्क़ एक सबब था मेरी ज़िन्दगी मे,
इश्क़ एक सबब था मेरी ज़िन्दगी मे,
पूर्वार्थ
*माता (कुंडलिया)*
*माता (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
अच्छा होगा
अच्छा होगा
Madhuyanka Raj
याद हो बस तुझे
याद हो बस तुझे
Dr fauzia Naseem shad
हो सके तो खुद के मित्र बनें शत्रु नहीं
हो सके तो खुद के मित्र बनें शत्रु नहीं
Sonam Puneet Dubey
हम हिम्मत हार कर कैसे बैठ सकते हैं?
हम हिम्मत हार कर कैसे बैठ सकते हैं?
Ajit Kumar "Karn"
माँ सरस्वती अन्तर्मन मन में..
माँ सरस्वती अन्तर्मन मन में..
Vijay kumar Pandey
किस मोड़ पे मिलेंगे बिछड़कर हम दोनों हमसफ़र,
किस मोड़ पे मिलेंगे बिछड़कर हम दोनों हमसफ़र,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
कुंडलिया
कुंडलिया
Sarla Sarla Singh "Snigdha "
क्युं बताने से हर्ज़ करते हो
क्युं बताने से हर्ज़ करते हो
Shweta Soni
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Mahendra Narayan
Loading...