श्री गणेश की काव्य मय जन्म कथा
शिव शंकर माता पार्वती, कैलाश पर सुख से रहते थे
विश्वकर्मा के बनाए महल में, गृहस्थ धर्म में दोनों रत थे
सुखद दांपत्य चला दोनों का, पुत्र कार्तिकेय उत्पन्न हुए
असुरों के विनाश की खातिर, युद्धों में संलग्न हुए
मार दिया तारक वरदानी, पर असुर नहीं घटते थे
शिव शंकर जी पार्वती संग, घर में सुख से रमते थे
एक बार सब देवो ने, बैठक एक बुलाई थी
सृष्टि संचालन हेतु शिव के मोहभंग की युक्ति बनाई थी
एक दिवस देव सभी, मिलकर कैलाश पधारे
तीन लोक के स्वामी शंकर, क्यों हुए मोह के मारे
प्रत्युत्तर में शिव शंकर बोले, मैं प्रेमातुर गौरा का हूं
प्रेम पाश शांत हो मेरा,आज इसी में अटका हूं
काम मोह हो शांत हृदय का, मैं सृष्टि का काम करूं
प्रेम पाश में बंधा हुआ, कैसे मैं उपकार करूं
सूर्यदेव ने ताप से अपने, काम मोह को शांत किया
शिव को अपने काम मोह से, शीघ्र वहीं पर तृप्त किया
पार्वती को कथाएं सारी, शिव जा समझाईं
नहीं पुत्र जन्मोंगी कोख से, विस्तार से बात बताई
कुपित हुईं आदिशक्ति, देवों को श्राप दे डाला
नहीं बनेंगीं मां देव पत्नियां,देवो क्या कर डाला
कार्तिकेय युद्धरत थे, शिव शंकर सृष्टि के कामों में
आदिशक्ति को पुत्र कामना, जाग रही अंतर्मन में
शिव शंकर के इतने गण हैं, कोई तो मेरा अपना हो
मेरा मन भी लगा रहे, मेरा भी पूरा सपना हो
इन्हीं विचारों में माता ने, उबटन का पुतला एक बनाया
आदिशक्ति ने प्राण मंत्र पढ़, उसको जीवंत बनाया
रूप तेज गुण संपन्न शिशु, हृदय उमा का हरषाया
आदि शक्ति के आदिदेव को, मिला था मां का साया
एक दिवस माता ने अपने, पुत्र को पास बुलाया
बिठा गोद में आदिशक्ति ने, बालक को समझाया
आज्ञा बिना नहीं मेरी कोई, अंतहपुर में आएगा
आदेश माता शिरोधार्य, नहीं कोई आ पाएगा
एक दिवस भोले शंकर, अपने अंतहपुर को आए
रोक दिया छोटे बालक ने, शिव शंकर समझ न पाए
नंदी आदि समस्त गण, बालक को हरा ना पाए
शक्तिशाली हटी बालक पर, शिवजी तैश में आए
काट दिया बालक का सिर, अंतहपुर में प्रवेश किया
देख अचानक शिव शंकर को, शक्ति ने यह प्रश्न किया
रोका नहीं द्वार पर तुमको, मैंने बालक बैठाया था
मार दिया मैंने उसको, कौन उद्दंड बैठाया था
गश खाकर गिर गईं उमा, स्वामी वह मेरा बालक था
मेरी आज्ञा से बैठा था, नहीं मारने लायक था
हाहाकार मचा कैलाश पर, सभी देवगण आए
सहा न जाए माता का दुख, देव सभी घबराए
देख माजरा शिव शंकर ने, देवों को आदेश दिया
उत्तर दिशा में जीव कोई, बैठा हो शिशु को पीठ दिया
शीश ले आना उसी शिशु का, सुदर्शन ने अंजाम दिया
ले आए शिशु हाथी का सिर, शिव शंकर ने रोप दिया
जीवित किया उमा का बालक, श्री गणेश नाम दिया
आदि अनादि है श्री गणेश, उमा इच्छा ने प्रकट किया
गणाध्यक्ष बनाया देवों ने, और नाना उपहार दिए
प्रथम पूज्य माना उनको, दिव्य शक्ति संपन्न हुए
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को, श्री गणेश का प्रकाट्य हुआ
रिद्धि सिद्धि समृद्धि दाता, श्री गणेश का जन्म हुआ
एक सहस्त्र नाम हैं उनके, विघ्नविनाशकसंकट हरता हैं
द्वादश नाम है लंबोदर के, मनोकामना पूरन करता हैं
वक्रतुंड, एकदंत, पिंडाक्षं, गजबक़मं, लंबोदरम, विकटमेव, विघ्नराजं, धूम्रवर्णं, भालचंद्र, विनायकम गणपति, गजाननम
विद्यार्थी को विद्या मिलती, धनार्थी को वैभव धन
पुत्र कामना पूरन करते, मोक्षार्थी पाए मोक्ष जीवन
रिद्धि-सिद्धि बुद्धि देते गणपति, खुशहाल बने सब का जीवन
आदि अनादि देव गजानन, हृदय बिराजते हैं जन जन
गणपति बप्पा की जय
सुरेश कुमार चतुर्वेदी