श्री गंगा दशहरा द्वार पत्र (उत्तराखंड परंपरा )
उत्तराखंड जहां अपनी प्राकृतिक सौंदर्य और देवभूमि के नाम से पूरे विश्व में प्रसिद्ध है वही यहां के लोगों द्वारा अपने त्योहारों और अपनी परंपराओं को मनाने का तरीका इनको और लोगों से थोड़ा अलग रखता है ।
श्री गंगा दशहरा द्वार पत्र उत्तराखंड में मनाने वाला एक ऐसा ही प्रसिद्ध पर्व है , यह पर्व जेष्ठ शुक्ल दशमी , हर वर्ष जून के महीने में मनाया जाता है , इस पर्व के बारे में यह संबंधित है कि इस दिन पावन गंगा नदी स्वर्ग लोक से पृथ्वी पर अवतरित हुई थी और प्रसिद्ध पंडित बसंत बल्लभ जी के अनुसार , ( जब पतित पावनी माँ गंगा स्वर्ग से पृथ्वी आई , तब सप्त ऋषि कुर्मांचल ( कुमाऊँ ) क्षेत्र में तपस्या कर रहे थे , माँ गंगा के पृथ्वी आगमन पर सप्तऋषियों ने उनकी पूजा की , आश्रम में जल छिड़ककर अपने आश्रमो के द्वार पर द्वार पत्र लगाए , तभी से कुर्मांचल ( कुमाऊँ ) क्षेत्र में द्वार पर गंगा दशहरा द्वार पत्र लगाने की परम्परा है )
इस दिन इस पर्व के बारे में यह मान्यता है जो कोई व्यक्ति जिस दिन गंगा स्नान या किसी और पवित्र नदी में स्नान करता है तो उसको विष्णु लोक की प्राप्ति होती है , और उसके द्वारा किए गए सारे पाप और कष्टों का नाश हो जाता है ।
उत्तराखंड में श्री गंगा दशरथ द्वार पत्र घर के दरवाजों पर जेष्ठ शुक्ल दशमी को लगाया जाता है , इस द्वार पत्र में भगवानों के चित्र (गणेश , शिव , सरस्वती आदि ) और मंत्रों का उच्चारण लिखित रूप में होता है ।
उत्तराखंड परिवार के अपने कुल गुरु , पंडित जी (ब्राह्मण )अपने यजमानों को कुछ दिन पहले एक वर्गाकार सफेद कागज में विभिन्न रंगों के अंदर गणेश , शिव , पार्वती , हनुमान , आदि भगवानों का रंगीन चित्र देते हैं जिसके चारों ओर एक वृत्तीय या बहुवृत्तीय , कमल दलों को अंकित किया हुआ निसान होता है , जिसमे मुख्यत : लाल , पीला , हरा रंग भरा जाता है , और इसके बाहर वज्र निवारक पांच ऋषियों के नाम के साथ निम्नलिखित श्लोक लिखे होते हैं ,
” अगस्त्यश्च पुलस्त्यश्च वैशम्पायन एव च ।
र्जैमिनिश्च सुमन्तुश्च पञ्चैते वज्रवारका: ।।
मुनेःकल्याणमित्रस्य जैमिनेश्चाऽनुकीर्तनात् ।
विद्युदग्नि भयं नास्ति लिखितं गृहमण्डले ।।
यत्रानुपायी भगवान् दद्यात्ते हरिरीश्वरः।
भङ्गो भवति वज्रस्य तत्र शूलस्य का कथा ।।
यह एक शुद्ध रक्षा श्लोक है , जिसमे वज्रपात , आदि व्याधियों से रक्षा का संकल्प मंत्र लिखा हुआ होता हैं ।
अपने कुल गुरुवो के द्वारा श्री गंगा दशहरा द्वारा पत्र यजमानों ( परिवार ) को दिए जाने पर , अपने गुरुवों को दान मैं , पैसा , चावल , गेहूं देने की परंपरा है , जिस दिन श्री गंगा दशहरा द्वार पत्र अपने घर के दरवाजे पर लगाया जाता है उस दिन घर की अच्छी तरह साफ सफाई , और घर को गाय के गोबर से लीपा जाता है , और अपने कुल देवी, देवताओं की पूजा पाठ की जाती है ।
श्री गंगा दशहरा द्वार पत्र घर के दरवाजे पर लगाने से प्रकृति से होने वाले नुकसान और बाहरी हवाओं , बुरी नजर से उस घर को बचाए रखती है , यह उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध त्योहार , परंपरा है जो पूरे उत्तराखंड में हर्षोल्लास से मनाया जाता है ।
( श्लोक लीया हूआ )