श्रीराम-केवट मिलन
श्रीराम-केवट मिलन
श्रीराम लखन सिया सहित पहुँचे गंगा तीर
आह्वान करे केवट का कृपालु ईश रघुवीर
देख प्रभु साक्षात केवट उल्लसित अकुलान
ब्रह्म-जीव के मिलन का तनिक नहीं था भान
निहोरा निवेदन निषाद से मुस्काते सियाराम
नौका लाओ पार उतारो खड़े हम केवट धाम
विस्मित केवट देख प्रभु की लीला अपरम्पार
तरणी क्या पार कराए उसे जो स्वयं तारणहार
कर बद्ध विनती तुमसे प्रभु पखार लेने दो चरण
नार हो गयी नाव काठ की निश्चित मेरा मरण
ले अजोरी में जल पग धोता केवट प्रमुदित मन
भाव विभोर झरते गंगाजल में घुलते अश्रु कण
चरणामृत पी मिटा लियो दुःख दोष पीर संताप
हर्षित देवगण करें पुष्प वर्षा प्रभु-भक्त मिलाप
पार उतर गंगा के सिया ने हाथ अंगूठी टिकाई
संकट में साथ दिया केवट ले ले अपनी उतराई
जन्म धन्य हो गया राघव कैसे लूँ उतराई आज
मैं भी केवट तू भी केवट दोनों करते एक काज
ऋण उतार देना रघुनन्दन जब मैं आऊँ तेरे द्वार
करो उद्धार करा मलिन को यह भवसागार पार
रेखा ड्रोलिया
कोलकाता