श्रीराम किसको चाहिए..?
सियासत को पूर्ण सत्ता और सब अधूरा चाहिए,
अधूरा देश और अधूरा इंसान चाहिए,
सत्ता के लिए सब आसान होना चाहिए,
मंदिर मस्जिद नहीं इनको बस अँगूठा चाहिए,
डर लगा है मिल ना जाएं राम कहीं पूर्ण रूप में,
इसलिए विभीषण के मित्र धनुर्धर राम चाहिए,
कर्तव्यपथ पर त्याग सत्ता जो हो गए वनबास के,
गेरुए वस्त्रों में लिपटे ना वो सीता, ना वो लक्ष्मण किसी को चाहिए,
एक तिहाई वोट ही काफी हैं जीतने लोकतंत्र को,
बस ऐसा ही एक तिहाई जनतंत्र हमको चाहिए,
हर सड़क, इमारत पर अपना नाम लिख दो खोदकर,
इतिहास के पन्नों में अपना नाम अमर होना चाहिए,
जो कोई कह दे, बातें कही जो प्रभु श्रीराम ने,
ऐसी हर आवाज के लिए अशोक वाटिका होनी चाहिए,
आँख, कान बंद कर बात बस मेरे मन की सुनते रहो,
हर किसी लंकेश को ऐसे ही अंधभक्त प्रेमी चाहिए,
ना किसी को राम, लक्ष्मण, ना कोई सीता माँ चाहिए,
चीर छाती जो फोटो लगा ले, ऐसा भक्त हनुमान चाहिए,
सत्ता तक पहुँच आसान हो ऐसी कोई मंथरा चाहिए,
राम जाएं वनबास को अयोध्या में ना भरत किसी को चाहिए।।
prAstya…..(प्रशांत सोलंकी)