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7 Sep 2017 · 1 min read

श्राप

किसान होना क्या पाप है?
या ईश्वर का कोई श्राप हैं?
आखिर है क्या?
कोई तो समझा दे
हमें दिशा नई दिखा दे।
यह कैसा अभिषाप है
जो सबका क्षुधा मिटाते
क्यों खूद भूखा सो जाते?
बैलों के संग रहते हैं
धूप में अक्सर तपते हैं
कोई तो बतला दो!
आखिर क्यों हैरान है?
कृषक क्यों परेशान हैं?
कभी जल धार की मार से
कभी सुखे सूर्य की ताप से।
क्या इनके दिन कभी पलटेंगे
कभी मेहर ईश्वर की बरसेंगे?
इनके भाग्य कब बदलेंगे?
आत्महत्या के निष्ठूर क्षण से
आखिर कब ये पलटेंगे।
क्या कोई समझायेगा?
इनके सूने नयनों में
“सचिन” स्वप्न सजीव जगायेगा?
©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”

Language: Hindi
232 Views
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