श्राप
‘श्राप’
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मर गई हैं आत्मा
हम देह लिये
घूम रहे है
आत्मा फिर
ढूँढ लेगी
अपना घर
हम देह के
लिये ढूँढ लेंगे
फिर नई
मरी हुई
आत्मा
आत्मा निकल
गई है
देह पड़ी है
चादर ओढ़
सुन रही है
गरूड़ पुराण
की कथा।
सुन रही है
पाप पुण्य
की सज़ा।
ख़ाली है पड़ी
वैतरणी
बूढ़ी गायों में
नहीं रही ताक़त
पार करवाने की
वैतरणी
नचिकेता भोग रहा
श्राप पिता का
यम के द्वार पर।
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राजेश’ललित’