श्रम
ताटंक छंद आधारित मुक्तक गीत
ख्वाब उसी के पूरे होते, जो श्रम को अपनाता है।
गगन नापने की खातिर निज, पंखों को फैलाता है।
बहुत कीमती सपने सारे, कीमत जिसने जानी है।
चीर दिया पत्थर का सीना, हार न उसने मानी है।
अपने जज्बे दमखम से ही, यत्न सदा रखता जारी,
पूर्ण हुआ है सपना उसका,जिसने मन में ठानी है।
सपनों को पाने की खातिर,खुद को दांव लगाता है,
ख्वाब उसी के पूरे होते, जो श्रम को अपनाता है।
स्वर्ण खरा होता है तब ही, तप चोटें सह जाता है ।
लग्न अगर सच्ची होगी तो, पर्वत शीश झुकाता है।
चलो निरंतर तुम मत बैठो,मलकर यूँ ही हाथों को ।
लक्ष्य हीन मानव का जीवन,शमशानों-सा,होता है। ।
मंजिल पाने की खातिर जो,तूफां से टकराता है
ख्वाब उसी के पूरे होते, जो श्रम को अपनाता है।
जवाँ हौसले मानव मन के,छलक उठा मुख पे नूरी।
पग-पग कठिनाई से लड़कर,हर आशा होती पूरी।
हार नहीं मानो मुश्किल से, है निज मंजिल को पाना,
नहीं सोचना मजबूरी को, स्वप्न तभी होगी पूरी।
इतिहास रचाने की खातिर, दुख से कब घबराता है।
ख्वाब उसी के पूरे होते, जो श्रम को अपनाता है।
लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली