श्रमिक
मज़बूर चल -चल के हारी है,
ना खत्म हो रहा सफर,
कौन जाने क्यों ज़ारी है।
रोज़ी -रोटी छिन गई,
यह कैसी महामारी है,
भूखे पेट से गुम किलकारी है।
मज़बूर चल -चल के हारी है,
ना खत्म हो रहा सफर,
कौन जाने क्यों ज़ारी है।
रोज़ी -रोटी छिन गई,
यह कैसी महामारी है,
भूखे पेट से गुम किलकारी है।