व्यथा कथा
श्रम नीर लिए , हिय पीर लिए ,
भाल पे स्वेद बहा के चले ,
क्षीण यष्टि लिए , सृजन-दृष्टि लिए ,
छोड़ के गेह कहां को चले ,
निस्तेज नयन में स्वप्न लिए ,
अनल क्षुधा की मिटाने चले ,
पर स्वप्न तो पूरे हो न सके ,
फिर लौट के घर को आन चले ,
कोई पैदल नंगे पांव चले ,
कोई बूढ़ी मां को लिए चले ,
कोई भूखे पेट निढाल चले ,
कोई इधर चले कोई उधर चले ,
दुत्कार मिली , फटकार मिली ,
दुःख दर्द सभी , फिर लेते चले ,
थक चूर हुए चलते-चलते
सो गए कहीं भी सांझ ढले ,
भाग्य ही उनके साथ न था ,
रौंदे गए लोहित चक्र तले ,
वे श्रमिक भी मानव ही थे ,
नियति से सदा वे गए छले ।
अशोक सोनी ।