श्रमिक
श्रमिक
उस श्रमिक का
चोटी से चला पसीना
तय करके सफर
पूरे बदन का
पहुंचा एड़ी तक
मिले चंद रुपए
उसकी मेहनत पर
किसी ने
दलाली कमाई
किसी ने
आढ़त कमाई
चमकीले चेहरों ने
की मसहूरी
चला लाखों का व्यापार
श्रमिक रहा
जस का तस
दब गया बन कर
अर्थव्यवस्था की
नींव की ईंट
-विनोद सिल्ला©