श्रमिक दिवस
श्रमिक दिवस
(01/05/24)
तपते सूरज से यारी है,
वर्षा भी लगती प्यारी है।
जाड़ा में बाहर जाता हूँ,
हर मौसम को मैं भाता हूँ।
घर आटा चावल लाना है
तो सिर पर भार उठाना है।
ईटा गारा सीमेंट रेत
ढोकर छत पर ले जाना है।
संसाधन से बहुत दूर हैं ये,
मजबूर बहुत मजदूर हैं ये।
कुछ तो ऐसे हैं कामगार,
कम मेहनत में हैं दामदार।
कुछ श्रमिक हैं बुद्धिबल में,
निपटा देते पल दो पल में।
भविष्य के साथ निधि भी है,
जीने की सुंदर विधि भी है।
संसाधन से भरपूर हैं ये,
ये भी तो एक मजदूर हैं ये।
कहने को आज है एक मई,
श्रामिक दिवस का शोर भई।
मंहगाई से बढ़े रोज खई।
सब खुशियां घर रूठ गई।
यदि श्रमिक दिवस मानना है,
सन्साधन भी दिलवाना है।
परेशानी से भरपूर हैं ये।
निज देश के मजदूर हैं ये।