श्रद्धांजलि
आखिर!
दाग ही दिए ग्रेनेड
जैश-ए-मोहम्मद के
आतंकियों ने
सेना के शिविर में
सोते हुए जवानों पर ।
14 जवान ज़िन्दा जले
20 हुए घायल ।
फिर भी हम
अभी तक हैं, शान्ति के
और दोस्ती के कायल ।
65 सालों से हमने
दोस्ती के लिए
जब भी बढ़ाया एक हाथ
हमारे दस हाथ काटे गए ।
शान्ति के लिए
जब भी झुकाया हमने सिर ,
पचास सिर काटे गए ।
हमनें जब -जब भी देखा
अमन चैन का सपना;
हमें इसी तरह
जलाया गया ज़िन्दा ।
हम कहते रहे,
होगी लड़ाई आर-पार ।
और दुश्मन करता रहा
हमारे मंसूबों को तार-तार ।
अब भी हम चले थे,
मुक्त करने बलूचिस्तान ।
बदले में मारे गए,
सोते हुए निर्दोष जवान ।
यद्यपि हमला बिल्कुल,
कायराना है ।
यह दुश्मन का
फितरतनामा है ।
तो हमें भी छोड़ना होंगी
शान्ति की बातें ।
क्योंकि यह हम
पहले भी कर चुके,
महाभारत में –
ख़ून का बदला ख़ून ।
मौत का बदला मौत ।
छल का बदला छल ।
तो फिर यह सब
क्यों नहीं हो सकता आजकल
उठो !रहनुमाओ !
और जगालो अपना
सोया हुआ ज़मीर ।
ताकि -फिर न चल सकें
दुश्मन के ये तीर ।
यह रचना मैंने19सितंबर2016को उरी हमले में शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के निमित्त रची थी ।