‘श्रद्धांजलि’
शब्द हैँ निःशब्द, अरु है लेखनी भी मौन,
तार वीणा के हैँ घायल, राग छेड़े कौन।
गीत हैँ गुमसुम, कहानी हो चुकी ख़ामोश है,
उनके स्वर मेँ कोई कविता,अब सुना पाएगा कौन।
राष्ट्र मेँ जनचेतना का जो प्रणेता था कभी,
मृत्यु का वह सँवरण कर ,हो चुका है कब का मौन।
जिस मेँ “आशा” की किरण थी देश ने देखी कभी,
“अटल” सी वह राह सच मेँ हमको दिखलाएगा कौन।
अश्रुपूरित नयन हैँ, उनको विदा हम कर रहे,
है मगर सँताप उर मेँ ,उन सा बन पाएगा कौन..!