श्याम-राधा घनाक्षरी
घनाक्षरी
आँगन में भोर भई, भोर भई भोर भई
राधिका हैरान भई, भोर कब हो गई
छम छम छम छम, बाजे जब घुंघरू तो
कहने लगीं सखियां, जाने कहां खो गई
चढ़ के अटेर पर, देखा जो दूर तक
सूरज था लाल-लाल,दुनिया क्यों सो गई
प्रेम की उमंग लिए, कृष्ण की तरंग लिए
भूल गई सुध बुध, श्याम श्याम हो गई।।
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श्याम घनाक्षरी
झूम झूम नाचे नाचे, मेघ सम बरखा सी
काली-काली कजराली, अलकाएं बावरी
राधा सी ठिठोली करे, हंसे मुस्कराए सम
ग्राम-ग्राम नाचे फिरे, छेड़े तान बांसुरी
धक-धक दिल करे, धक-धक दिल कहे
बदनाम बादल है, मूरत ये साँवरी
चूर चूर करे चूर, लट लट घनश्याम
कहता उद्धव रहा, पानी संग आग री।।
*सूर्यकांत द्विवेदी