शोहरत
जो लांघ चुके थे शोहरत की दहलीज़
वो फैला अपने पंख
आसमाँ में उड़ने लग गए थे
हवा बह रही थी ऊँचाइयों की
तो वो हवा में बहने लग गये थे
जो आया एक तूफ़ाँ
तो साये की तलाश में
खुले आसमाँ में
छत ढूँढने लग गये थे
वो जो संभल गए थे ज़मी पर
वो पैरों पर चलने लग गए थे
@संदीप