……………… शोषण!!
शोषण एक मानसिक बिमारी है,
शोषित होना लाचारी है,
हम इसे सहजता से लेते हैं,
हर रोज,हर बात पर शोषित होते रहते हैं,
हमें अपनी सामर्थ्य का आभास रहता है,
इस लिए अपने से अधिक सामर्थ्य वान से प्रतिकार कहां होता है।
शोषण कर्ता को शोषण की बिमारी रहती है,
उसे अपने से कम सामर्थ्य वाले से,
अपनी भड़ास निकालनी होती है,
क्यों कि, कभी कभार वह स्वयं भी,
शोषण का शिकार हुआ होता है,
और इस लिए वह उसका प्रतिकार,
अपने से कमजोर, और निरीह प्राणी पर करता है।
शोषण से समाज में वर्ग भेद पनपता है,
शोषकों का एक वर्ग,
स्वयं को इसका पोषक समझता है,
वहीं दूसरी ओर,
समाज में एक वह वर्ग भी रहता है,
जो अपना शोषण, अपनी नियति समझता है।
यह शोषण शायद आदि काल से चला आ रहा है,
इसका पुष्ट प्रमाण, कथा-कहानियों में मिलता है,
और इसी लिए, श्रीहरि को अवतार लेना पड़ता है,
जो हमें यह बोध कराता है,
शोषण करना एक अपराध है।
फिर भी हम शोषित हुए जा रहे हैं,
और शोषित होने को अपनी नियति मानते आ रहे हैं,
शोषक भी बे-रोक-टोक के, शोषित किए जा रहे हैं,
वह इसे अपना नैसर्गिक अधिकार समझे जा रहे हैं,
किन्तु किसी को भी, इसका अहसास नहीं होता,
यदि यह शोषित नहीं हुआ होता,
तो तब भी तो, उसे अपना जीवन यापन स्वयं ही करना होता।
लेकिन अब तो हम लोकतंत्र के सभ्य समाज में रहते हैं,
जिसमें सबको समान अधिकार उन्हें विधि मान्य रहते हैं,
तब भी एक-दूसरे का शोषण किया जा रहा है,
और व्यवस्थाओं पर प्रश्नचिन्ह लगा जा रहा है,
जो हाथ जोड़ विनती करके, अपनी झोली फैला कर,
भीख मांगते हुए फिरते हैं,
वहीं सत्ता प्राप्त कर अपने को भाग्यविधाता मानने लगते हैं,
और जब हममें से कोई अपने अधिकारों की बात करता है,
तो उसे देशद्रोही, असामाजिक तत्वों में सुमार करके,
जेलों में कैद कर, अमानवीय व्यवहार के साथ शोषण होता है।
हम कैसे लोकतंत्र में जी रहे हैं,
जो अपने भावों को प्रकट करने पर शोषित हो रहे हैं,
जिन्हें अपना पैरोकार मानकर चुना था,
वह ही अब हमें नियम-कानून का पाठ पढ़ा रहे हैं,
और उनके साथ, ऐसे लोगों की भरमार हो गई है,
जो अपनी दृष्टि खोकर, उन्हीं के नजरिए से देखने में लगे हुए हैं,
तब ही तो, लोगों में,यह प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है,
शोषितों की जनसंख्या लगातार बढ़ती जा रही है,
यह शोषित और शोषक का क्रम जारी है,
शोषण करना उनका हक है, ऐसा सोचना उनकी बिमारी है,
साथ ही शोषित होना, हमारी मजबूरी है, लाचारी है।।