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19 Feb 2024 · 1 min read

शोर

शोर
******
शोर… शोर ही तो है
चीख…चिल्लाहट…विलाप
ये ही तो प्रकार हैं शोर के,
दिखता है… मचलता है
एक उन्मादी की तरह
क्योंकि शोर खुद में एक उन्माद है,
वहीं अंतर्मन में भी शोर होता है
जो कि ना तो किसी को दिखता है
और ना ही किसी को सुनाई देता है,
वो…. वो तो खुद को सुनाई देता है
मानव उससे लड़ता है
फिर थक कर शांत हो जाता है,
कुछ पल के लिए….
फिर मन का शोर उसे उद्धवेलित करता है
मानव फिर उसके शोर में डूबता और चिल्लाता है
पर उसकी आवाज कोई सुन नहीं पाता
क्योंकि वो उसकी बेबसी की आवाज होती है
जो… दूर…. कहीं दूर से आती हुई प्रतीत होती है
उसके अंतर्मन में
सदा शोर बनकर गूंजती रहती है,
सदा शोर बनकर गूंजती रहती है ||

शशि कांत श्रीवास्तव
डेराबस्सी मोहाली, पंजाब
स्वरचित मौलिक रचना

3 Likes · 123 Views
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