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31 May 2024 · 1 min read

“शोर है”

ज़ुबाँ ख़ामोश है, पर अल्फाज़ों में शोर है,
तोहमतें बेशुमार है, फ़िर भी दिल पाक सार है,
तर्क ए ताल्लुक तो बस बहाना है, आंखिर में छोड़ के ही जाना है,
इश्क़ का तो बस नाम है, इश्क़ तो ज़िस्म के नाम पे बाज़ार सारे आम है,
दुश्मनी ही सच्ची है, लिबाज़ तो मोहब्बत में उतर रहे है,
कौन सबक सीखता है सिर्फ़ बातों से, सबको एक हादसा ज़रूरी है,
लफ़्ज़ों से बयां करे दास्ताँ, बस नज़्मों में शोर है यही काफी है।
“लोहित टम्टा”

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