“शोर है बारिशों का”
ये रोर है घनघोर देखो,
शोर है बारिशों का।
अलमस्त बूंदो की है लड़ियाँ,
या श्रृंगार है धरा का।
नाचती हैं कोंपलें,
स्नात -पुष्प हैं सिहरते।
रोम- रोम हैं प्रफुल्लित,
देखो वन और कानन के।
हैं उमड़ते, हैं घुमड़ते,
मेघ देखो अलमस्त हो।
कभी श्वेत ,तो कभी श्याम से,
इन्द्रधनुषी छटा बिखेरते ये धरा पे।
ये रोर है घनघोर देखो,
शोर है बारिशों का।
…निधि…