शोक पथ पे ये अशोक महान जा
अशोक सम्राट का जवाब की क्यों वो अखण्ड भारत छोड़ के चला गया एक बार फिर से अशोक बनकर कोशिश
माँ भारती का बेटा बनकर मिला मुझकों बहुत प्यार
पर बोद्ध धर्म अपनाकर नहीं था दिल पर इख़्तियार
इसलिये तो मैं अखण्ड भारत का सौंप गया था भार
वीरो की भूमि में कांलिंग युद्ध के बाद मैं ही शेष था
स्वर्णिम आभा युक्त भारत में बौधौं का उपदेश था
नींद ही नहीं आती थी तब मेरे इन नयनो में गुरदेव
अपने ह्रदय की आवाज सुनी तब हुआ आदेश था
मुझको तो बचपन में मातृभूमि से प्यार था बेशुमार
इसलिये तो मैं अखण्ड भारत का सौंप गया था भार
पहचाना ही नहीं किसी ने मैं हर जन्म में आया था
अपने अखण्ड भारत का सपना आँखों में लाया था
कभी छत्रपति शिवाजी तो कभी वीर राणा बनकर
कभी रानी लक्ष्मी बाई बन डलहौजी से टकराया था
मुगलों और अंग्रेज़ी हुकूमत को किया था तार तार
इसलिये तो मैं अखण्ड भारत का सौंप गया था भार
मंगल के रूप में आजादी का पहला बिगुल बजाया
सुबाषचंद के रूप में आकर अपनी सेना को बनाया
जैसा जैसा वक्त आया वैसे ही हर बार भारत में आ
अपनी भारत माता के दुध का कर्ज था मैंने चुकाया
बेईमानों के राज में दूध का कर्ज है दूँगा आके उतार
इसलिये तो मैं अखण्ड भारत का सौंप गया था भार
पृथ्वी राज चौहान की नहीं वो थी मेरी ही तलवार
छत्रपति शिवाजी के नाम की उपाधि ली थी धार
राणा के भाले को मुगलों की दहशत से जानते है
मैं कभी नहीं भुला अपनी मातृभूमि का उपकार
इसलिये तो मैं अखण्ड भारत का सौंप गया था भार
जिसने भारत माँ को रुलाया उसको मैं तो रुलाऊंगा
कसम माँ की मुझकों अब फिर जन्म ले के आऊँगा
जुनूँ सर पर मेरे अपने अखण्ड भारत को बनाने का
पहले कहलाया अशोक महान अब जाने क्या कहलाऊंगा
बदले वक़्त के साथ वचन कि अखण्ड भारत बनाऊंगा
छायेगी फिर से मेरे भारत में खुशियो की हंसी बहार
इसलिये तो मैं अखण्ड भारत का सौंप गया था भार
अबके मेरे आह्वान पर मत होना देशवासियों उदास
मुझको तो करना आतंकी और दुश्मन का विनाश
वो जो तुमपर शासन करते और डराते धमकाते है
उनके ह्र्दय से मेरे यमदूत खींच लेंगे उनकी सांस
मैं मिटा दूँगा अपने भारत के जीवन से अंधियार
इसलिये तो मैं अखण्ड भारत का सौंप गया था भार
अशोक के संग ख़ुशीया होगी तुम्हारे हर पथ निहार
इसलिये तो मैं अखण्ड भारत का सौंप गया था भार
शोक पथ पर ये अशोक महाँ कभी जा चला नहीं
शतरंजी चालो में आ कर कभी अशोक छ्ला नहीं
सूरज को दीप दिखाने की ताकत मेरी बाजुओं में
मेरा चराग़ सूरज से डर सुबह तक कभी ढला नहीं
क़यामत टूट पड़े मुझ पर और मर जाएगा ज़मीर
अगर अखण्ड भारत छोड़ जाने का मैं गुनाहगार
इसलिये तो मैं अखण्ड भारत का सौंप गया था भार
अशोक सपड़ा की कलम से दिल्ली से
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