शॉल (Shawl)
कुछ अलग और अच्छा खरीदने, एक बार मैं निकल पड़ा बाज़ार।
बाज़ार तक पहुॅंचने से पहले ही, मुझे दूर से चीज़ें दिख गईं हज़ार।
एक बार में सारा बाज़ार खरीद लें, सबका दिल तो यही चाहता है।
हम सबके मन की इच्छाओं को, बाज़ार प्रलोभन देकर बुलाता है।
उस रोज़ ठंडियों का मौसम था, बाज़ार में कपड़ों की गर्मी दिखी।
सुबह-शाम ठंड का कर्फ़्यू था, दिन के सूरज में थोड़ी नर्मी दिखी।
घर में दो जून की रोटी मिले, तभी ये फेरी वाला रोज़ चिल्लाता है।
हम सबके मन की इच्छाओं को, बाज़ार प्रलोभन देकर बुलाता है।
सबसे पहले मेरा चंचल मन भी, ऊॅंची व सार्वजनिक मॉल में गया।
फिर कपड़ों का मूल्य सुनते ही, मन फेरी पे बिक रहे शॉल में गया।
फेरी वालों की हालत देखकर, मेरा दिल पल में द्रवित हो जाता है।
हम सबके मन की इच्छाओं को, बाज़ार प्रलोभन देकर बुलाता है।
फेरी के इर्द-गिर्द भीड़ बनकर, बहुत लोग शॉल खरीदने में लगे थे।
पशमीना, कलमकारी, नागा, कढ़ाईदार, वहाॅं तो कई शॉल टॅंगे थे।
ढूॅंढ़े अनेक पर लेते सिर्फ़ एक, थान टटोले बिना रहा नहीं जाता है।
हम सबके मन की इच्छाओं को, बाज़ार प्रलोभन देकर बुलाता है।
फेरी की टूटा बंदोबस्त देखकर, मैंने भी अपनी आँखें बंद कर लीं।
जैसे ही मुझे एक शॉल दिखी, मैंने बिन बोले वो ही पसंद कर ली।
पहली बार में इतना सुंदर वस्त्र, भला अकेले में कौन चुन पाता है?
हम सबके मन की इच्छाओं को, बाज़ार प्रलोभन देकर बुलाता है।
घर पहुॅंचते ही सभी घरवालों ने, शॉल की किस्म को ख़ूब निहारा।
ऐसे में मेरे दुविधा ग्रस्त मन को, सराहना से मिल गया था सहारा।
पसंद अपनी और हामी सबकी, ऐसा ही विचार मन को सताता है।
हम सबके मन की इच्छाओं को, बाज़ार प्रलोभन देकर बुलाता है।
कभी तिलक, गोखले, गाॅंधी, कभी पटेल, बटुकेश्वर और आज़ाद।
इनके तन से शॉल लिपटी थी, तभी सारे वस्त्र आते हैं इसके बाद।
इसलिए शॉल का रेशा-रेशा, स्वतंत्रता की अमर कहानी सुनाता है।
हम सबके मन की इच्छाओं को, बाज़ार प्रलोभन देकर बुलाता है।
शॉल देख मेरी बहन बोली, भैय्या तुम हर बार तारीफ़ से बचते हो।
कोई कुछ भी कहे पर मैं न मानूॅं, आप इस शॉल में बड़े जचते हो।
बिगड़ी बात अपने ही सुधारेंगे, यही खयाल तो सुकून पहुँचाता है।
हम सबके मन की इच्छाओं को, बाज़ार प्रलोभन देकर बुलाता है।
अपनी पसंदीदा शॉल के साथ, यूं मैंने ढेर सारे मंच साझा किए हैं। गुज़रे वक्त ने भी सारे किस्से, आज बातों के ज़रिए ताज़ा किए हैं।
भावी अनिश्चित, वर्तमान गतिमान, सच से तो पूर्व ही मिलवाता है।
हम सबके मन की इच्छाओं को, बाज़ार प्रलोभन देकर बुलाता है।
जो शॉल पहले बेकार लगती थी, अब दिल को अच्छी लगने लगी।
रात ख्वाहिशें ओढ़कर सोती रहीं, भोर भी इसके संग जगने लगी।
क्षणिक तुरंत आकर्षित करे, पर शाश्वत रूप ही दिल को भाता है।
हम सबके मन की इच्छाओं को, बाज़ार प्रलोभन देकर बुलाता है।
आज काफ़ी लंबा वक्त गुज़रा, अब ये शॉल मेरा ध्यान रखने लगी।
महफ़िल, सम्मेलन, बैठकों में, मेरे कवि हृदय का मान रखने लगी।
हर शॉल का एक मखमली स्पर्श, हर उम्र के हृदय को छू जाता है।
हम सबके मन की इच्छाओं को, बाज़ार प्रलोभन देकर बुलाता है।
धुलाई व सफ़ाई के बल से, नई-नवेली शॉल भी पुरानी हो रही है।
जिसे सब सुनाया करते थे, आज वही अनसुनी कहानी हो रही है।
वक्त के बेवक्त थपेड़ों से तो, भाव, चाव व लगाव भी खो जाता है।
हम सबके मन की इच्छाओं को, बाज़ार प्रलोभन देकर बुलाता है।
सभी रेशों के कमज़ोर पड़ते ही, मखमली शॉल तक उधड़ने लगी।
उसकी सुंदरता के लुप्त होते ही, सारी यादें हृदय से बिछड़ने लगीं।
किसी ख़ास वस्तु के बिछड़ते ही, हमारा अन्तर्मन चुप हो जाता है।
हम सबके मन की इच्छाओं को, बाज़ार प्रलोभन देकर बुलाता है।