शैलजा छंद
शैलजा छंद { २४ मात्रा .१६-८यति,अंत- दीर्घ (गा) )
जीव जगत देखा संसारी , बोझा ढोता |
कठपुतली सा नचता रहता, हँसता रोता ||
लोभी धन का ढेर लगाता, फिर भी खोता |
हाय-हाय में खुद ही पड़ता, जगता सोता ||
बरसे जब भी पानी पहला , हर रोम खिले |
बादल बने प्यार का दानी , शुभ गीत मिले ||
आसमान भी कहता सबसे , अब गेह तले |
आज सुखद सब मंगल होगें ,नव दीप जले ||
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( शैलजा छंद { २४ मात्रा .१६-८यति,अंत- दीर्घ (गा) )
मुक्तक ~
बीती बातें कटुता की सब , जो भी भूला |
कभी नहीं वह लाता मन में , कोई झूला |
साधु जनों की सुंदर बातें , सदा मानता –
अंधकार का उर में रहता , नहीं बबूला |
वचन सरस युत अच्छी लगती , सभी कहानी |
सब कुछ न्यारी बातें होतीं , यहाँ पुरानी |
नहीं कभी जो प्राणी माने , कटुता पाले ~
उसको हम सब कह सकते यह , है नादानी |
सदा मिलेंगें वहाँ अँधेरे , जहाँ उजाला |
सबकी देखी अपनी छाया ,रँग है काला |
जहाँ जीत है हार वहीं पर , है मड़राती –
चोर घूमते जहाँ लगाते , हम है ताला |
प्रश्न चिन्ह पर उत्तर मिलते , देखा हमने |
सभी भूल से सीखा करते , माना सबने |
राह पूछते चौराहे पर , आकर ठिठकें –
साथ माँगने पर ही आते ,खुद भी अपने |
राह बनाता कोई जग में , कोई चलता |
कोई जग में हाथ बजाता , कोई मलता |
सोच नहीं है सबकी मिलती, कभी एक -सी –
कोई सूरज उगता लगता , कोई ढलता |
वृक्ष लगाता बूड़ा घर का, फल सुत पाता |
लिखे गीत गायक को मिलते , नाम कमाता |
बाग सँवारे वन में माली, मिले न माला –
समझ न आते तेरे हमको , नियम विधाता |
सुभाष सिंघई
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गीत ( आधार शैलजा छंद )
{ २४ मात्रा .१६-८यति,अंत- दीर्घ (गा) )
नेता मतलब का अब सबसे, रखते नाता |
पीड़़ाएँ सब सहती जाती, भारत माता |
कसम तिरंगे की खाते हैं , देश बेंचते |
सरे आम जनता की जाकर , खाल खेंचते ||
चोर-चोर मौसोरे दिखते , सबको भ्राता |
पीड़ाएँ सब सहती जाती , भारत माता ||
अन्न उगाते कृषक हमारे , भूखे मरते |
खाद बीज के दाम न निकलें , कहने डरते ||
अन्न उगाकर रूखा -सूखा , भोजन पाता |
पीड़ाएँ सब सहती जाती , भारत माता ||
जन मन गण को गाते रहते , झंडा ताने |
जन गण का मन कैसा होता , बात न जाने ||
सभी जगह बेईमानी का , दिखता छाता |
पीड़ाएँ सब सहती जाती , भारत माता ||
मूर्ख समझते हैं जनता को , नीयत खोटी |
असर न उन पर कुछ भी होता, चमड़ी मोटी ||
जन का पैसा जन के आगे , लुटता जाता ||
पीड़ाएँ सब सहती जाती , भारत माता ||
सुभाष सिंघई जतारा
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शैलजा छंद गीतिका
{ २४ मात्रा .१६-८यति,अंत- दीर्घ (गा) )
कीन्हीं गलती और न मानी , है नादानी |
कटु वचनों का देना पानी , है नादानी |
जिसके जैसे भाव रखे है , बाँटा करते ,
पड़ती है तब मुख की खानी, है नादानी |
करता मानव मारा मारी , क्रोधी बनता,
शांति नहीं कुछ भी पहचानी , है नादानी |
कपटी मिलकर धूम मचाते , करें तमाशा ,
रार हमेशा जिसने ठानी , है नादानी |
उल्टी सीधी चालें चलना , रचकर झूठी ,
मक्कारी की रचें कहानी , है नादानी |
फितरत करते रहते जग में , हर पल इंशा ,
कहते जब यह हवा सुहानी, है नादानी |
इस दुनिया में रहे सुभाषा , भजन न करते ,
हर पल करते नष्ट जवानी , है नादानी |
सुभाष सिंघई
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शैलजा छंद
{ २४ मात्रा .१६-८यति,अंत- दीर्घ (गा)
गोरी घर की छत पर चढ़कर, देखे अँगना |
सूरज तन को छूकर बोले , थोड़ा हँसना ||
पवन खींचकर घूँघट खोलें , छेड़ें कँगना |
बादल कहता मैं रस छोड़ूँ , थोड़ा रँगना ||
रात अँधेरी गोरी कहती , साजन आओ |
कितना चाहो तुम अब मुझको , कुछ बतलाओ ||
मन भी मेरा रूठा रहता , तुम समझाओ |
छूकर मेरा तन -मन देखो , कहीं न जाओ |
सुभाष सिंघई , जतारा (टीकमगढ़ ) म०प्र०
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(हमारे बुंदेलखंड में इस छंद का एक परम्परिक गीत बहुत प्रसिद्ध है काहे डारे गोरी दिल खौ ,अपने अँगना ।
काहे फरकत रात बिराते , तोरे कँगना ||
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शैलजा छंद
{ २४ मात्रा .१६-८यति,अंत- दीर्घ (गा)
मुक्तक –
याद तुम्हारी साजन आती , राह बताओ |
भेज अभी संदेशा कोई , हाल सुनाओ |
नहीं परीक्षा दे सकती हूँ , मैं चाहत की –
सूखे मन में पहले पानी , तुम बरषाओं |
चले गए हो जबसे साजन , रोती रहती |
कब आएगें कभी सहेली , आकर कहती |
हाल बताऊँ कैसे उसको , अपने मन का-
विरह अग्नि की अपने अंदर , लपटें सहती |
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शैलजा छंद गीतिका
{ २४ मात्रा .१६-८यति,अंत- दीर्घ (गा)
गीतिका, समांत स्वर – एँ पदांत – मुश्किलें
झिझके मन से गोरी बोली , मिलें मुश्किलें |
काले बादल बरसे अब तो , दिखें मुश्किलें |
चली गेह से मटकी लेकर , पानी भरने ,
रूप देखकर मचला मौसम , लगें मुश्किलें |
पवन उठाकर घूँघट पलटे , चेहरा देखे ,
बैठ कर्ण पर तितली उससे , कहें मुश्किलें |
बैठ गाल पर भँवरा कहता , रस है मीठा ,
यहाँ सहेली खुद ही आकर, सुनें मुश्किलें |
हाल जानकर लोग गये जब , कुछ समझाने ,
और अधिक भी आकर मन में, जगें मुश्किलें |
सुभाष सिंघई