Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
7 Dec 2023 · 3 min read

शैलजा छंद

शैलजा छंद { २४ मात्रा .१६-८यति,अंत- दीर्घ (गा) )

जीव जगत देखा संसारी , बोझा ढोता |
कठपुतली सा नचता रहता, हँसता रोता ||
लोभी धन का ढेर लगाता, फिर भी खोता |
हाय-हाय में खुद ही पड़ता, जगता‌ सोता ||

बरसे जब भी पानी पहला , हर रोम खिले |
बादल बने प्यार का दानी , शुभ गीत मिले ||
आसमान भी कहता सबसे , अब गेह तले |
आज सुखद सब मंगल होगें ,नव दीप जले ||
~~~~~~~~~~~
( शैलजा छंद { २४ मात्रा .१६-८यति,अंत- दीर्घ (गा) )
मुक्तक ~

बीती बातें कटुता की सब , जो भी भूला |
कभी नहीं वह लाता मन में , कोई झूला |
साधु जनों की सुंदर बातें , सदा मानता –
अंधकार का उर में रहता , नहीं बबूला |

वचन सरस युत अच्छी लगती , सभी कहानी |
सब कुछ न्यारी बातें होतीं , यहाँ पुरानी |
नहीं कभी जो प्राणी माने , कटुता पाले ~
उसको हम सब कह सकते यह , है नादानी |

सदा मिलेंगें वहाँ अँधेरे , जहाँ उजाला |
सबकी देखी अपनी छाया ,रँग है काला |
जहाँ जीत है हार वहीं पर , है मड़राती –
चोर घूमते जहाँ लगाते , हम है ताला |

प्रश्न चिन्ह पर उत्तर मिलते , देखा हमने |
सभी भूल से सीखा करते , माना सबने |
राह पूछते चौराहे पर , आकर ठिठकें –
साथ माँगने पर ही आते ,खुद भी अपने |

राह बनाता कोई जग में , कोई चलता |
कोई जग में हाथ बजाता , कोई मलता |
सोच नहीं है सबकी मिलती, कभी एक -सी –
कोई सूरज उगता लगता , कोई ढलता |

वृक्ष लगाता बूड़ा घर का, फल सुत पाता |
लिखे गीत गायक को मिलते , नाम कमाता |
बाग सँवारे वन में माली, मिले न माला –
समझ न आते तेरे हमको , नियम विधाता |

सुभाष सिंघई

~~~~~~~~~~~

गीत ( आधार शैलजा छंद )
{ २४ मात्रा .१६-८यति,अंत- दीर्घ (गा) )

नेता मतलब का अब सबसे, रखते नाता |
पीड़़ाएँ सब‌ सहती जाती‌, भारत माता |

कसम तिरंगे की खाते हैं , देश बेंचते |
सरे आम जनता की जाकर , खाल खेंचते ||
चोर-चोर मौसोरे दिखते , सबको भ्राता |
पीड़ाएँ सब सहती जाती , भारत माता ||

अन्न उगाते कृषक हमारे , भूखे मरते |
खाद बीज के दाम न निकलें , कहने डरते ||
अन्न उगाकर रूखा -सूखा , भोजन पाता |
पीड़ाएँ सब सहती जाती , भारत माता ||

जन मन गण को गाते रहते , झंडा ताने |
जन गण का मन कैसा होता , बात न जाने ||
सभी जगह बेईमानी का , दिखता छाता |
पीड़ाएँ सब सहती जाती , भारत माता ||

मूर्ख समझते हैं जनता को , नीयत खोटी |
असर न उन पर कुछ भी होता, चमड़ी मोटी ||
जन का पैसा जन के आगे , लुटता जाता ||
पीड़ाएँ सब सहती जाती , भारत माता ||

सुभाष सिंघई जतारा

~~~~~~~
शैलजा छंद गीतिका
{ २४ मात्रा .१६-८यति,अंत- दीर्घ (गा) )

कीन्हीं गलती और न मानी , है नादानी |
कटु वचनों का देना पानी , है नादानी |

जिसके जैसे भाव रखे है , बाँटा करते ,
पड़ती है तब मुख की खानी‌, है नादानी |

करता मानव मारा मारी , क्रोधी बनता‌,
शांति नहीं कुछ भी पहचानी , है नादानी |

कपटी मिलकर धूम मचाते , करें तमाशा ,
रार हमेशा जिसने ठानी , है नादानी |

उल्टी सीधी चालें चलना , रचकर झूठी ,
मक्कारी की रचें कहानी , है नादानी |

फितरत करते रहते जग में , हर पल इंशा ,
कहते जब यह हवा सुहानी‌, है नादानी |

इस दुनिया में रहे सुभाषा , भजन न करते ,
हर पल करते नष्ट जवानी , है नादानी |

सुभाष सिंघई
~~~~~
शैलजा छंद
{ २४ मात्रा .१६-८यति,अंत- दीर्घ (गा)

गोरी घर की छत पर चढ़कर, देखे अँगना |
सूरज तन को छूकर बोले , थोड़ा हँसना ||
पवन खींचकर घूँघट खोलें , छेड़ें कँगना |
बादल कहता मैं रस छोड़ूँ , थोड़ा रँगना ||

रात अँधेरी गोरी कहती , साजन आओ |
कितना चाहो तुम अब मुझको , कुछ बतलाओ ||
मन भी मेरा रूठा रहता , तुम समझाओ |
छूकर मेरा तन -मन देखो , कहीं न जाओ |

सुभाष सिंघई , जतारा (टीकमगढ़ ) म०प्र०
~~~~~~~~~~~~~
(हमारे बुंदेलखंड में इस छंद का एक परम्परिक गीत बहुत प्रसिद्ध है काहे डारे गोरी दिल खौ ,अपने अँगना ।
काहे फरकत रात बिराते , तोरे कँगना ||
~~~~~~~~~~~~~
शैलजा छंद
{ २४ मात्रा .१६-८यति,अंत- दीर्घ (गा)
मुक्तक –

याद तुम्हारी साजन आती , राह बताओ |
भेज अभी संदेशा कोई , हाल सुनाओ |
नहीं परीक्षा दे सकती हूँ , मैं चाहत की –
सूखे मन में पहले पानी , तुम बरषाओं |

चले गए हो जबसे साजन , रोती रहती |
कब आएगें कभी सहेली , आकर कहती |
हाल बताऊँ कैसे उसको , अपने मन का-
विरह अग्नि की अपने अंदर , लपटें सहती |
~~~~~~~~
शैलजा छंद गीतिका
{ २४ मात्रा .१६-८यति,अंत- दीर्घ (गा)
गीतिका, समांत स्वर – एँ पदांत – मुश्किलें

झिझके मन से गोरी बोली , मिलें मुश्किलें |
काले बादल बरसे अब तो , दिखें मुश्किलें |

चली गेह से मटकी लेकर , पानी भरने ,
रूप देखकर मचला मौसम , लगें मुश्किलें |

पवन उठाकर घूँघट पलटे , चेहरा देखे ,
बैठ कर्ण पर तितली उससे , कहें मुश्किलें |

बैठ गाल पर भँवरा कहता , रस है मीठा ,
यहाँ सहेली खुद ही आकर, सुनें मुश्किलें |

हाल जानकर लोग गये जब , कुछ समझाने ,
और अधिक भी आकर मन में, जगें मुश्किलें |

सुभाष सिंघई

Language: Hindi
376 Views

You may also like these posts

चेहरा
चेहरा
Rambali Mishra
अगर मध्यस्थता हनुमान (परमार्थी) की हो तो बंदर (बाली)और दनुज
अगर मध्यस्थता हनुमान (परमार्थी) की हो तो बंदर (बाली)और दनुज
Sanjay ' शून्य'
आत्मविश्वास
आत्मविश्वास
नूरफातिमा खातून नूरी
मौलिक विचार
मौलिक विचार
डॉ.एल. सी. जैदिया 'जैदि'
I'm not proud
I'm not proud
VINOD CHAUHAN
तेरी नाराज़गियों से तुझको ठुकराने वाले मिलेंगे सारे जहां
तेरी नाराज़गियों से तुझको ठुकराने वाले मिलेंगे सारे जहां
Ankita Patel
*रिश्तों में दरारें*
*रिश्तों में दरारें*
Krishna Manshi
मैं मेरी कहानी और मेरी स्टेटस सब नहीं समझ पाते और जो समझ पात
मैं मेरी कहानी और मेरी स्टेटस सब नहीं समझ पाते और जो समझ पात
Ranjeet kumar patre
मैं उसकी निग़हबानी का ऐसा शिकार हूँ
मैं उसकी निग़हबानी का ऐसा शिकार हूँ
Shweta Soni
मां मैं तेरा नन्हा मुन्ना
मां मैं तेरा नन्हा मुन्ना
पूनम दीक्षित
नवरात्रि के इस पावन मौके पर, मां दुर्गा के आगमन का खुशियों स
नवरात्रि के इस पावन मौके पर, मां दुर्गा के आगमन का खुशियों स
Sahil Ahmad
किताबे पढ़िए!!
किताबे पढ़िए!!
पूर्वार्थ
सबको   सम्मान दो ,प्यार  का पैगाम दो ,पारदर्शिता भूलना नहीं
सबको सम्मान दो ,प्यार का पैगाम दो ,पारदर्शिता भूलना नहीं
DrLakshman Jha Parimal
सफ़ेद चमड़ी और सफेद कुर्ते से
सफ़ेद चमड़ी और सफेद कुर्ते से
Harminder Kaur
तन्हाई की चाहत
तन्हाई की चाहत
ओनिका सेतिया 'अनु '
शराब की वज़ह से
शराब की वज़ह से
Shekhar Chandra Mitra
3885.*पूर्णिका*
3885.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
आपकी खुशी
आपकी खुशी
Dr fauzia Naseem shad
दौर - ए - कश्मकश
दौर - ए - कश्मकश
Shyam Sundar Subramanian
वसंत पंचमी का महत्व
वसंत पंचमी का महत्व
Sudhir srivastava
ऊर्जा का सार्थक उपयोग कैसे करें। रविकेश झा
ऊर्जा का सार्थक उपयोग कैसे करें। रविकेश झा
Ravikesh Jha
*होठ  नहीं  नशीले जाम है*
*होठ नहीं नशीले जाम है*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
★Good Night★
★Good Night★
*प्रणय*
*परिवार: नौ दोहे*
*परिवार: नौ दोहे*
Ravi Prakash
भोर
भोर
Kanchan Khanna
होली
होली
Meera Singh
छंद का आनंद घनाक्षरी छंद
छंद का आनंद घनाक्षरी छंद
guru saxena
स्वर्ग से सुंदर समाज की कल्पना
स्वर्ग से सुंदर समाज की कल्पना
Ritu Asooja
रमेशराज की कहमुकरी संरचना में 10 ग़ज़लें
रमेशराज की कहमुकरी संरचना में 10 ग़ज़लें
कवि रमेशराज
दिल आइना
दिल आइना
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
Loading...