शैर-ए-धीरेन्द्र
मैं तो बेख़बर हूँ अपने आप से ,आजकल तुम्हे क्या हो गया है।
क्यों हो उदास बताओ जरा , मैं ढूढ दू जो भी खो गया है।
यह मेरी इश्क़ का खुमारी नहीं उतरेंगी हालात चाहे जैसे हो।
सवाल तो ये है की धीरेन्द्र- ए- इश्क़ ठुकरा कर अब तुम कैसे हो।
सुना है आजकल तुम महफ़िलो में नही जाते हो।
सुना है आजकल तुम किसी से नही बतियाते हो।
यही सब सुनने से यही तुमसे सुनने चला आया।
मैं सब कुछ जान लेता हूँ तुम्हरी आँखें देखकर
फिर हाल-ए-दिल क्यों धीरेन्द्र से छिपाते हो।
यह दिल-ए-धीरेन्द्र है आज क्यों बेईमान सा।
जशन-ए-इश्क़ में है यह कुछ इम्तेहान सा।
वो नज़रो से कर गए सारी बात मुझ से
मगर मैं चुपचाप बैठा हूँ बेजुबान सा।
वो जाने लगे मुझसे दूर जब
तब एक रिश्ता लगा उनसे अनजान सा।