शेष
धृणा थी,
अब क्षमा है,
द्वेष था,
अब प्रेम है,
युद्ध था,
अब शान्ति है,
आरोप था,
अब धन्यवाद हैं,
विचारों के इस
महासंग्राम में,
अर्जुन सा मेरा मन,
और कृष्ण सी मेरी ऊर्जा,
जीवन की गीता को,
प्रतिदिन बाँचते हैं—-
ताकि एक दिन-
जब शरीर मृत हो जाय,
तो शेष आन्नद रह जाय।