शेर
(1)
कितनी नफ़रत थी बुलंदी से उनको
परिंदे को पकड़ा और पर क़तर दिया
(2)
जल गई है होलिका झूठ हो गया खाक़
रंग उड़ाओ प्रेम के, घृणा कर दो राख
(2)
आपस में सब प्यार करें ये कुदरत का पैग़ाम है
अहबाबों के बीच में नफ़रत का क्या काम है
(2)
मज़हबी माहौल देखो जब सियासी हो गया ।
देश के हालात फिर दो कम छियासी हो गया ।।
(3)
भँवरे ने लिया चुम्बन गालों पे फूल के
आँखों में लगा चुभने भँवरा वो शूल के
(4)
लगता है डर हिना से ओर हल्दी के नाम से
कुछ ऐसा ख़ौफ़ उस घड़ी शहनाइयों में था
(5)
नकाब चेहरे पे उसने डाल रक्खा है!!
कफ़स में चाँद को जैसे कि पाल रक्खा है!!
(6)
जाते – जाते कोई ये अहसास दे गया
नैनों में नीर दिल को उपवास दे गया
(7)
हाथ हथकड़ी लग गई, मिलेगी अब न बेल
जय बीरू पकड़े गये, खतम हुआ सब खेल