शेर अहं को है जवाब !
हस्र तो देखो झूठी शान का,
अकड़ बकड़ बम्बई बो,
गिने गिनाए पूरे सौ,
आन्ना बचा न पास में,
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जो बढ़ न पाएं हाथ ममद को,
वो खुद को डूंडा ही समझे,
जो अपाहिज़ है बचपन के,
शोर मचाकर डूबते को लेते है बचा,
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जिन्हें सुख-शांति और धर्म चाहिए,
उनमें खुद से प्रीत लगाने की
होनी चाहिए कला,
वरन् महेंद्र की कलम में,
ताकत बहुत है अपना लेगी बना !
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महेंद्र की कलम तात्पर्य :-
संदेशवाहक कबूतर, तख़ती,घोड़े, सिग्नल आदि पीछे छूट गए,
आ गए मोबाइल फोन और इंटरनेट
तुरंत आपके विवेक को हर सकते है
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मानवता इतनी विकसित हो गई,
संपदा रही न पास में,
जो चीजें बनी थी कभी व्यवस्था के नाम पर,
आज का इंसान खड़ा है उन्हीं में फंसा हुआ,
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लो जी हमने भी छोड़ दिया है !
विवेक से अपने जीना,
जिसे जिस ढंग जीना है जिये !
अपनी तो विवेक ही आदत है,
कैसे देंगे भूला !