शेरू
गांव में खेसरू चाचा की सभी इज़्ज़त करते चाचा थे भी नेक दिल इंसान गांव में किसी के घर कोई सुख दुख का पल अवसर हो खेसरू चाचा पहले पहुंचते और जिस लायक रहते उस लायक सहयोग अवश्य करते।
गांव में लड़कियों की शादी में खेसरु चाचा गांव आये बारातियों के झूठे पत्तल उठाते जब उनसे कोई पूंछता की ऐसा क्यो करते है?
तो चाचा यही कहते गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि कोई काम छोटा नही होता स्वंय उन्होंने युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में जुठे पत्तल उठाए ।
लड़को की शादी में खेसरू चाचा गांव के बारात में सबसे आगे आगे चलते और कोशिश करते कि कोई विवाद या बवाल न हो पहले शादी विवाह में बवाल आम बात होती थी ।
गांव में जब किसी के घर गमी होती चचा लकड़ी आदि की व्यवस्था अपनी शक्ति के अनुसार करते एव घाट तक अवश्य जाते एवं चिता बनाने का काम करते।
गांव वाले चाचा की बहुत इज़्ज़त करते चाचा अकेले ही थे कोई और नही था उनके पिता सोमरू थे जिनके चार बेटे थे जिसमें खेसरू सबसे छोटे थे लेकिन परिवार में अकेले ही बचे थे बहुत दर्द समेटे दिल मे खेसरू सबको खुशी बांटते ।
चाचा के बापू हर साल गांव नदी के पार काली माई कि पूजा चढ़ाते जिसमे उनका पूरा परिवार शरीक होता और गांव के सारे लोग भी शरीक होते ।
दस वर्ष पूर्व सुमेरु हर वर्ष की भांति काली माई की पूजा चढ़ाने के लिए गांव की नदी पार सपरिवार गए गांव वाले भी बारी बारी नाव से गये पूजा चढ़ने के बाद सब लोग लौट आये जिसमे खेसरू भी थे ।
खाली तीन भाई
जोखन ,सालिग ,सीखन तीनो की जोरूऔर बाबू सुमेरु एव माई झुंगिया बची हुई थी सब अंत मे एक नाव में सवार हुए और गांव के तीर उतरने के लिए चले नाव को ही नदी के बीच मे पहुंची तेज धार और भंवर में फंस गयी और नाव डगमगाने लगी जिससे कि असंतुलित होंकर कभी इधर कभी उधर होते हुए एका एक डूब गई और खेसरू का पूरा परिवार नदी में डूब गया ।
गांव में अफरा तफ़री मच गई खेसरू के परिवार के लोंगो की बहुत खोज बिन करने के बाद सबके शव मील तो गए लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे काली माई ने सोमरू के पूरे परिवार की ही बलि ले ली ।
गांव में मातम का माहौल था गांव वालों की मदद से अंत्येष्टि हुई और अंतिम क्रिया सम्पन्न हुई तब से खेसरू अकेले ही थे गांव वालों ने बहुत समझाया कि खेसरू विवाह करके घर बसाए लेकिन खेसरू का जैसे दुनियां दारी से मन खिन्न हो चुका था उन्होंने किसी की बात नही मानी और अविवाहित ही थे।
उन्होंने अपने जी बहलाने के लिए बकरी और कुत्ते पाल रखे थे घर पर उन्ही की सेवा करते सारी खेती बटाई दे रखी थी और एक वसीहत बना रखी थी जिसमे लिख रखा था कि उनके बाद उनके परिवार की पुश्तेनी खेती काली माई के मंदिर के नाम होगी जो भी मंदिर का पुजारी होगा खेती की उपज से काली माई की पूजा करेगा ।
जब गांव वाले इस बाबत कोई सवाल करते तब खेसरू बताते हमार परिवार काली माई की पूजा में ही बलि चढ़ी गईल अब जमीन के आमदनी काली माई के कारे आई ।
खेसरू आपन खाना खुदे बनाते और बकरियों को चराते कुत्ता शेरू उनके सदा साथ रहता जैसे वह खेसरू का कोई सगा संबधी हो ।
खेसरू कि उम्र भी सत्तर के पार हो चुकी थी आंखों से दिखाई कम देता जब कही भी जाना होता शेरू कुत्ते को अपनी धोती का एक सिरे को पकड़ा देते वह आगे आगे चलता और खेसरू पीछे पीछे चलते जाते दिन किसी तरह कटते जा रहे थे ।
खेसरू ने बुढापे एव नज़र कमजोर होंने के कारण सभी बकरियों को तो बेच दिया लेकिन शेरू का नाही कोई ना कोई खरीदार था ना ही उसे वो बेच सके वह उनके साथ साये की तरह हर पल प्रहर लगा रहता नहाते खाते सोते जागते अक्सर खेसरू कहते शेरू ते कौने जनम के कर्जा खाये है इतना त कलयुग में मनई नाही निभावत है जेतना ते निभावत है ।
गांव वाले शेरू कुत्ते को अक्सर खेसरू की लकड़ी कहते ,कहते शेरू कुकुर खेसरू के साथ जैसन रहत जैसे # अंधे की लकड़ी# लोग आपस मे चर्चा करें कि खेसरू चाचा के काली माई आपन सवारी शेर त नाही दिहिंन लेकिन शेरे जैसन शेरू कुकुर जरूर दे दिहिंन जो बुढौती में सहारा और #अंधे की लकड़ी # जैसा है ।
शायद इंसान भी इतना चचा के देख रेख ना कर पावत जेतना शेरू कुकुर होइके करी रहा है ।
इंसान त बूढ़े अंधे खेसरू चाचा से दगा करी सकतेंन लेकिन शेरू कबो नही इहे कहा जात है वफादारी।
खेसरू अपने कोला के खेत मे सब्जी आदि बोए रहतें उन्होंने गोभी और टमाटर की खेती गांव वालों की मदद से कर रखी थी जो बहुत बढ़िया थी खेसरू जे कहे वही के गोभी टमाटर मुफ्त में दे दे ना त कुजाड़ां के बेचे खातिर दे ना ही केहू से पैसा ले सगरो गांव खेसरू की खेते के गोभी टमाटर खाई के अघाई गए ।
इतनी शराफत के बादो कुछ शरारती लोग रात को खेसरू के खेत से गोभी टमाटर चोरी करें खातिर अकल लगावे की जुगत में रहते लेकिन शेरू के रहते बहुत मुश्किल था ।
जब भी रात को खेसरू की कोला तनिक आहट मील जाय शेरू भौकल शुरू कर दे ।
सर्दी की रात गांव में जल्दी लोग सूत जातन एक दिन रातिके कुछ शरारती कुजड़े खेसरू के खेते के गोभी टमाटर चुरावे की नीयत से आये शेरू के आहट मिलते भगा भगा गया और भौकने लगा कुजड़ो ने जब जान लिया कि शेरू की रहते खेसरू की खेत से तीनको नाही लाई जा सकतेंन तब उन्होंने शेरू का हसिया से पेट फाड़ दिया शेरू वही ढेर हो गवा और शोमारू कि खेते का सारा गोभी टमाटर ले कर रफूचक्कर हो गए ।
सुबह गांव वाले जगे तो देखा कि शेरू मरा पड़ा है भागे भागे खेसरू को बताया कि चाचा शेरू के रातिके कोई मार दिए बा और खेत के सगरो गोभी और टमाटर तोड़ ले गईल बा खेसरू कि त दुनियां ही उझड गयी वह बार बार काली माई के दूहाई दे सिर्फ इहे कहे कौने जन्म के पाप के हिसाब चुकौली माई एक जानवर रहा #अंधे की लकड़ी # वोहू के हमसे छीन लिहलु अब हमार के बा जेकरे खातिर जियब पूरे दिन खेसरू इहे कहत विलखत रहेन गांव वाले बहुत समझाने की कोशिश करते रहे मगर खेसरू ना कुछ खाए ना पीएन बस कल्पत रहे शेरू के नाम लेते
रात भई गांव वाले खाना लाकर दिए किंतु खेसरू नही खाये रात भर रोअत कलपत रहन कब उनके प्राण पखेरू उड़ गईले किसी को नही मालूम सुबह जब गांव वाले नीद से जगे तो देखा खेसरू दुनियां में नही है गांव वाले शेरू के साथे उनकर चिता बनाये और दाह कर दिया तब से गांव वालो में मशहूर है खेसरू के #अंधे की लकड़ी # शेरू की साथे जल गए बहुत बुरा हुआ ।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।