*शून्य से दहाई का सफ़र*
जबतक बाएं अंग में बैठा था
थी कोई क़ीमत नहीं उसकी
शून्य को जब अहसास हुआ
किस्मत बदल गई उसकी
शून्य से दहाई और दहाई से सौ
बनने में फिर लगा न वक्त उसको
नज़रंदाज़ करते थे जो पहले
अब ठोक रहे थे वो सलाम उसको
है वक़्त और क़िस्मत की बात
सबकुछ रहेगा नहीं हमेशा ऐसा
है आज अगर गर्दिश में सितारे
बदलेगा कल फिर घबराना कैसा
शून्य का काम शून्य ही कर सकता है
इस बात को तुझको दिखाना होगा
नहीं समझता कोई तेरा मूल्य, फ़र्क़ नहीं
तुझे ख़ुद को बहुमूल्य समझना होगा
गिर भी गया कभी मंज़िल की राह में
गिरकर तू उठ जाएगा इतना समझ ले
गिर गया ख़ुद की नज़रों में अगर
फिर न कभी उठ पाएगा ये भी समझ ले
समझेगा ख़ुद को बहुमूल्य अगर
तभी बाएं से दाएं का सफ़र तय कर पाएगा
है नहीं आसान ये सफ़र दहाई तक पहुँचने का
तय कर गया तो ज़माना ख़ुद तेरी क़ीमत जान जाएगा।