शून्य की नाव
अव्यक्त को व्यक्त करना
उतना ही असम्भव है
जैसे सोते सोते जगना
या रोते रोते मुस्कुराना
दुखी मन से मधुर गीत गाना
मौन को व्यक्त करना
उतना ही असम्भव है।
जैसे आग में ठंडक
मरु भूमि में जल ढूंढना
शोर में शांति
और शब्दों में मौन ढूंढना
अव्यक्त को व्यक्त करना
उतना ही असंभव है।
कैसे करोगे
विरोधाभासी है यह
और यदि कर ही दोगे
शब्दों में पिरो कर
मौन को व्यक्त
शब्द नष्ट कर देंगे
मौन की पवित्रता, अनन्तता, निर्दोषता
तब रह जाऐंगे सिर्फ शब्द और उनके अर्थ
उनकी व्याख्याएं
शब्द और विचारों का
अंतहीन जाल
ऐसे में मौन कहीं खो जाता है
शब्दों अर्थों की भीड़ में
पराया सा हो जाता है।
जीना ही है तो
मौन में जीएं
मौन को जीएं
मौन को मौन से सींचें
यही है असीमित आकाश
अनंत के सागर में शून्य की नाव।
डॉ विपिन शर्मा