शून्य का अन्त हीन सफ़र
जीवन के अंतहीन सफर में
जब शून्यता का बोध
हृदय को उद्वेलित करने लगे
तब मस्तिष्क के भृकुटि के
मध्य में ध्यान कर
सुषुम्ना नाड़ी से विचरते हुए
कुंडलिनी को जागृत कर
उसे अखंड विस्तृत फैले ब्रह्मांड में
शून्य से बिन्दु के
प्रकाश की ओर ले जाने का
सतत प्रयास —-
स्व: से स्वयं को मिलाने
आत्मा से परमात्मा का मनन–
अंधकार से प्रकाश की ओर–
स्थूल से सूक्ष्म की ओर+-
खंड से अखंड–
ब्रह्म से ब्रह्मांड का परिचय–
स्थिर से गतिमान–
जड़ और चेतन —
शून्य से उस अंतहीन–
शिखर के सामीप्य –
पुनः शून्य के समिष्ट
से व्यक्ति की चेतना का बोध ही
शून्य से उच्चता की ओर
ले जाने का प्रयास ही
मानव जीवन के
इस अंतहीन सफर का शून्य !!