शुर्पणखा सरीखी नार
*** शुर्पणखा सरीखी नार ***
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शुर्पणखा सरीखी मतवाली नार
समाज में सर्वदा होती बदकार
पराए मर्द पर नजर है रखती
चंचल नटखट होते कुकृत्य कार
सदियों से धिक्कारी ही जाती है
ना होता मान सम्मान घर बाहर
जिन्दगी में होना चाहिए ठहराव
औरत का गहणा है लाज श्रृंगार
चरित्र बढ़ाए नारी मान सम्मान
चरित्र पर आश्रित नारी आधार
विचरण प्रवृत्ति है नारी अपमान
सदा खो जाता प्रतिष्ठा व्यवहार
मान मर्यादा का रखे ना ख्याल
चरित्रहीन कहलाए सदैव नार
फलदार टहनी जैसा हैं झुकाव
पल में ढल जाए नारी व्यवहार
दर्पण होता है आबरु अपमान
संस्कृति की होती स्तंभ मीनार
मानवीय मूल्य की है पाठशाला
आँचल में छिपा रखती संस्कार
सुखविंद्र सदा रहे मर्यादित नार
सदा होता रहेगा नारी सत्कार
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)