*शुभ्रा मिश्रा जी : मेरी पहली प्रशंसक*
शुभ्रा मिश्रा जी : मेरी पहली प्रशंसक
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शुभ्रा मिश्रा जी की प्रशंसा मुझे अमर उजाला #काव्य फेसबुक पेज पर नवंबर के अंतिम सप्ताह में किसी दिन मिली थी। इस पर प्रतिदिन एक शब्द के प्रयोग के साथ कविता लिखने का आग्रह होता था। #28_अगस्त_2020 से मैंने प्रतिदिन #आज_का_शब्द के आधार पर कुंडलियाँ लिखीं। नव्वे दिन तक कुंडलियाँ लगभग उपेक्षित रहीं। तत्पश्चात शुभ्रा मिश्रा जी ने जब यह लिखा कि #आप_बहुत_अच्छा_लिखते_हैं तो मुझे पढ़कर सचमुच बहुत अच्छा लगा। फिर धीरे-धीरे लगभग रोजाना ही अमर उजाला काव्य पर उनकी सुंदर और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया देखने में आने लगी।
मेरी उत्सुकता जगी और मैं सोचने लगा कि यह मेरी प्रथम प्रशंसक कौन हैं ? वैसे तो 1985-90 के आसपास सुप्रसिद्ध कवि श्री #निर्भय_हाथरसी ने अपने एक पत्र में मुझे लिखा था कि मैं आपकी लेखनी का सर्वप्रथम प्रशंसक हूँ । लेकिन यह बातें बहुत पुरानी हो चुकी थीं। और वह अखबारों का दौर अब अतीत की यादें बन चुका था। फेसबुक का जमाना आ चुका था । ऐसे में मुझे शुभ्रा मिश्रा जी की प्रशंसा अच्छी लगी । वैसे भी अमर उजाला काव्य मंच पर उनकी प्रशंसा ऐसी थी, मानो रेगिस्तान में बरसात के सुंदर छींटे पड़ रहे हों।
शुभ्रा जी की फेसबुक देखकर मेरा मन प्रसन्न हो गया। आप की साहित्यिक अभिरुचियाँ चकित करने वाली थीं। आप हिंदी और उर्दू के प्रसिद्ध कवियों और शायरों की चुनी हुई कविताएँ आमतौर पर पोस्ट किया करती थीं। कभी-कभी आपकी मौलिक टिप्पणियाँ काव्य की छटा बिखेर देती थीं और यह सब पाठक को गहरे सोचने के लिए विवश करती थीं।
फेसबुक पोस्ट को पढ़ते-पढ़ते मैंने एक स्थान पर आपके अतीत के संबंध में कुछ जानकारियाँ प्राप्त कीं। जब आप कक्षा सात में पढ़ती थीं, तभी आपके पिताजी ने आपका परिचय प्रसिद्ध कवि श्री नीरज से कराया था । तत्पश्चात आपके ससुर साहब ने आपके काव्य-प्रेम को पंख प्रदान किए और आपने काव्य के क्षेत्र में नई उड़ानें भरीं।अन्य ज्यादा विवरण तो नहीं मिला और फेसबुक पर आपका चित्र भी उस समय उपलब्ध नहीं था ,लेकिन फिर भी इतना तो मैं आश्वस्त था कि मेरी यह प्रशंसक एक शालीन, सुसंस्कृत तथा मुझसे अधिक अध्ययनशील प्रवृत्ति की महिला हैं। उनके द्वारा प्रशंसा प्राप्त करना मेरे लिए गौरव की बात थी ।
फिर मैंने एक दिन लिखा कि मेरी 99 कुंडलियाँ अब अमर उजाला काव्य में आ चुकी हैं तो अगले दिन आपने प्रतिक्रिया लिखते हुए कहा कि आज 100 कुंडलियाँ पूरी हो गई हैं, अगर आज्ञा हो तो कॉपी कर लें। मुझे भला क्या एतराज होता ! मेरे लिए उस समय हर्ष का ठिकाना नहीं रहा , जब मैंने यह देखा कि मेरे द्वारा लिखित एवं प्रकाशित एक कुंडलिया जो अमर उजाला काव्य के द्वारा प्रदत्त आज का शब्द नीलाभ का प्रयोग करते हुए लिखी गई थी ,उसे आपने अपनी फेसबुक पोस्ट पर शेयर किया । यह एक रचनाकार के लिए बहुत गौरव की बात होती है ।
मेरी रचनाओं पर आपकी प्रशंसा बराबर प्राप्त हो रही है। एक दिन जब आपने यह सुझाव दिया कि कुंडलिया संग्रह प्रकाशित होना चाहिए , तब मैंने आपसे यह कहने की धृष्टता कर डाली कि आप ही संग्रह के लिए कुंडलियों का चयन करके पुस्तक प्रकाशित करवा दें, जिसका खर्चा मैं वहन कर लूंगा। आपने उचित ही कहा कि मेरे पास छपाई की कोई व्यवस्था नहीं है और मैं प्रशंसक के रूप में ही प्रसन्न हूँ।
मेरे लिए वास्तव में यह एक स्वप्न के समान प्रतीत होने वाली स्थिति है कि मेरी कुंडलियाँ आपको इतनी पसंद आ रही हैं कि आप उनकी मुक्त कंठ से प्रशंसा कर रही हैं। मैं शुभ्रा मिश्रा जी का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ तथा ईश्वर से कामना करता हूँ कि वह मेरी लेखनी को सदैव इस योग्य बनाए रखें कि मैं श्रेष्ठ रचनाओं का सृजन कर सकूँ ताकि वह प्रशंसा के योग्य बन सकें।
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा , रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451